ये नाम हमें शिक्षा काल में पढाये जाते थे आज नदारद है या ये भी हो सकता है आये दिन सरकारे बदल जाती है तो किस किस को याद करे किस किस को रोइए आराम बड़ी चीज़ है मुह ठक के सोइए.
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मुझे याद है, जिसमें उन्होंने इंदौर में बीते अपने जीवन के आरंभिक शिक्षा काल के दो सहपाठी-चित्रकारों का अपनी कला में प्रभाव स्वीकारा था कि उन्होंने रेखाओं के सरलीकरण (सिम्पलिफिकेशन आॅॅफ लाइन्स) में विष्णु चिंचालकर और रंग-संयोजन मंे डी. जे. जोशी से काफी प्रभावग्रहण किया।
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माला जी में आपके इस लेख से सहमत हूँ की जब से इसे सार्व जनिक किया गया तब से इसके रख रखाव में उतना ध्यान नहीं रख पा रहे है इसके नियम है और फहराने के तरीके है शौक समय उसकी स्थित और होती है साथ ही शाम को इसके उतरने का भी प्राबधान होता है पर नए नियम क्या कहते है पता नहीं पर जो गर्ब हम शिक्षा काल में अनुभव करते थे वह शायद गायव है.