अपनी पुस्तक ‘महात्मा गांधी का शिक्षा-दर्शन ' में डा एम एस पटेल ने जो विचार गांधी के विषय में व्यक्त किये हैं वे अन्य भारतीय शिक्षा-शास्त्रियों के विषय में भी पर्याप्त मात्रा में लागू होते हैं।
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“गांधी जी के दर्शन का सावधानी के साथ अध्ययन करे पर यह स्पष्ट हो जायगा कि उनके शिक्षादर्शन में प्रकृतिवाद, आदर्शवाद एवं प्रयोजनवाद सहायक हैं-गांधी जी का शिक्षा-दर्शन पर्याप्त मात्रा में प्रकृतिवादी है।
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यह हो सकता है कि सूक्ष्म दृष्टि से विचार करने के लिए उपर्युक्त दोनों युगों की सीमायें निर्धारित की जायें किन्तु विशेषकर बाद वाले युग में प्रथम युग की इतनी अधिक विशेषतायें विद्यमान हैं कि दोनों युगों के जीवन-दर्शन और शिक्षा-दर्शन पर एक साथ विचार करना भी उपयोगी होगा।
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यह हो सकता है कि सूक्ष्म दृष्टि से विचार करने के लिए उपर्युक्त दोनों युगों की सीमायें निर्धारित की जायें किन्तु विशेषकर बाद वाले युग में प्रथम युग की इतनी अधिक विशेषतायें विद्यमान हैं कि दोनों युगों के जीवन-दर्शन और शिक्षा-दर्शन पर एक साथ विचार करना भी उपयोगी होगा।
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राजा मोहन राय, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, केशवचन्द्र सेन, जोतिबा फूले, सावित्री बाई फूले, आम्बेडकर, रविन्द्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी के शिक्षा-दर्शन व स्वतन्त्रता-आन्दोलन के संकल्पों से निसृत अपेक्षाओं के अनुरूप शिक्षा के ढांचे व मूल्यों की जो शुरूआत हुई थी, वह पूर्णत: पलट गई है।
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गांधी जी का शिक्षा-दर्शन अपने स्थापन में प्रकृतिवादी, अपने उद्देश्य में आदर्शवादी और कार्य की योजना तथा पद्धति में प्रयोजनवादी है-एक शिक्षा दार्शनिक के रूप में गांधी जी की महत्ता इस तथ्य में है कि उनके दर्शन में प्रकृतिवादी, आदर्शवादी एवं प्रयोजनवादी प्रवृत्तियाँ पृथक् एवं स्वतन्त्र न होकर एक हो गयी हैं और उनका विकास एक शिक्षा-सिद्धान्त के रूप में हुआ है जो आज की आवश्यकताओं के अनुकूल होगा तथा मनुष्य की आत्मा की पवित्रतम आकांक्षाओं को सन्तुष्ट करेगा।