उसी प्रकार बड़े भी शुद्ध हृदय से एक दूसरे से आलिंगन करते हैं और बधाई देते हैं, जिसे बंगाली में कोलाकुली कहा जाता है।
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यह भजन इसलिए याद कर रहा हूँ कि ईश्वर को प्राप्त करने के लिए कर्मकांड जरूरी नहीं, शुद्ध हृदय से की गई प्रार्थना जरूरी है।
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कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि जब हम अपना कर्म शुद्ध हृदय से नित्य करते हैं तो भगवान का नाम लेने की आवश्यकता क्या है?
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उन्होंने उसे ध्यानपूर्वक सुना और शुद्ध हृदय से प्रेषित निमंत्रण जानकर वे कहने लगे कि, “जो मेरा स्मरण करता है, उसका मुझे सदैव ही ध्यान रहता है ।
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व्यावहारिक जीवन में यह आवश्यक है कि हम अहंकार को मिटाकर शुद्ध हृदय से आवश्यकतानुसार बार-बार ऐसी क्षमा प्रदान करें कि यह भावना हमारे हृदय में सदैव बनी रहे।
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दरअसल हम भले ही अपना नित्य कर्म शुद्ध हृदय से करें पर जब तक हमें अपने अध्यात्म का ज्ञान नहीं होगा तब कभी सुख की अनुभूति नहीं हो सकती।
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देशकाल एवं परिस्थिति के अनुसार मनुष्य मात्र को व्रत, उपवास, दान, जप, अपने इष्ट जप एवं शुद्ध हृदय से भगवती एकादशी का व्रत करना चाहिए।
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व्यावहारिक जीवन में यह आवश्यक है कि हम अहंकार को मिटाकर शुद्ध हृदय से आवश्यकता अनुसार बार-बार ऐसी क्षमा प्रदान करें कि यह भावना हमारे हृदय में सदैव बनी रहे।
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भगवान ने महर्षि से आगे कहा, अतिथियों का सत्कार करनेवाला, जरूरतमंदों को जलदान और अन्नदान करनेवाला, शुद्ध हृदय से श्री हरिनाम का जप करनेवाला आदर्श गृहस्थ भी मेरा प्रिय भक्त है।
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यह है संयोग से अनायास ही महाशिवरात्रि व्रत का महत्व, जो लोग स्वेच्छा से शुद्ध हृदय से विश्वास और श्रद्धा से विधिपूर्वक इस व्रत को करते होंगे उनके पुण्य का क्या?