| 21. | जो हानि हो चुकी है उसके लिए शोक करना, अधिक हानि को निमंत्रित करना है।
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| 22. | उन्हीं के कुलदीपक आप हैं, अतः आपका शोक करना किसी प्रकार शोभा नहीं देता।
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| 23. | जो हानि हो चुकी हैं उसके लिए शोक करना, अधिक हानि को निमंत्रित करना हैं।
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| 24. | जो हानि हो चुकी हैं उसके लिए शोक करना, अधिक हानि को निमंत्रित करना हैं।
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| 25. | मृत्यु पर शोक करना व्यर्थ है, यह तो एक अटल सत्य है जिसे टाला नही जा सकता।
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| 26. | आत्मा अमर है, अर्थात् ईसकी मृत्यु तो होती ही नहीं, तो उसका शोक करना व्यर्थ है ।
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| 27. | उसका नाश कभी भी हो सकता है, वह निश्चित है, तो उसका शोक करना भी व्यर्थ है ।
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| 28. | मृत्यु पर शोक करना व्यर्थ है, यह तो एक अटल सत्य है जिसे टाला नही जा सकता।
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| 29. | जब हम इस बात को अच्छी तरह समझ जाते हैं, तो मृत्यु पर शोक करना बंद कर देते हैं।
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| 30. | सीधी बात यह है कि मृत्यु पर शोक करना या तेरहवीं और श्राद्ध करना विषाद को ही जन्म देता है।
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