ये मुद्दे हैं-छूत-अछूत, शिक्षा में भेदभाव, श्रमविभाजन में भेदभाव, कृषिशोषण, जमीन के अधिकार, ऊँच-नीच के सवाल, वर्ण और जातिप्रथा, सेक्स, शारीरिक शोषण, पति-पत्नी में असमानता, स्त्री की अधिकारहीनता, मातहत भावबोध आदि।
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बाद में इन सारे उत्पादनों के बीच स्वयं को व्यवस्थित न कर पाने के कारण समाज के सभी वर्गों के मध्य श्रमविभाजन यानि हर कायो को विभिन्न लोगों के मध्य विभाजित करने की प्रथा का विकास उत्पादन में वृद्धि लाने हेतु किया गया ।
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अनेक विद्वानों का मत है कि श्वेतवर्णं विजेता आर्यो ओर श्यामवर्ण विजित अनार्यो के संघर्ष से आर्य ओर दास दो जातियों का उदय हुआ और कालक्रम में वर्णसांकर्य, धर्म, व्यवसाय, श्रमविभाजन, संस्कृति, प्रवास तथा भौगेलिक पार्थक्य से हजारों जातियाँ उत्पन्न हुईं।
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कालांतर में सभ्यता के विकास, समाज के वर्गीकरण, श्रमविभाजन और उद्बुद्ध साहित्यिक चेतना के कारण पहले की उन्मेषपूर्ण भाषा भी विभक्त हो गई-कविता ने अपने को रागों की उन्मेषपूर्ण भाषा के रूप में सीमित कर लिया और विज्ञान, दर्शन, इतिहास, धर्मशास्र, नीति, कथा और नाटक ने साधारण व्यवहार, अर्थात् कथ्य की भाषा को अपनाया।
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कालांतर में सभ्यता के विकास, समाज के वर्गीकरण, श्रमविभाजन और उद्बुद्ध साहित्यिक चेतना के कारण पहले की उन्मेषपूर्ण भाषा भी विभक्त हो गई-कविता ने अपने को रागों की उन्मेषपूर्ण भाषा के रूप में सीमित कर लिया और विज्ञान, दर्शन, इतिहास, धर्मशास्र, नीति, कथा और नाटक ने साधारण व्यवहार, अर्थात् कथ्य की भाषा को अपनाया।
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प्रसूति के समय में तथा उसके बाद कुछ काल तक कार्यक्षम न होने के कारण पत्नी को पति के अवलंब की आवश्यकता होती है, इस कारण दोनों में श्रमविभाजन होता है, पत्नी बच्चों के लालन पालन और घर के काम को सँभालती है और पति पत्नी तथा संतान के भरणपोषण का दायित्व लेता है।
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युग के साथ ही साथ बढते जा रहे ज्ञान, विज्ञान और कला के विभिन् न क्षेत्रों में पूरी जनसंख् या को उलझाए रखने में कुछ व् यावहारिक कठिनाइयों को देखते हुए पहले श्रमविभाजन और फिर श्रम विभाजन के फलस् वरूप विभिन् न प्रकार के कार्यों को काफी दिनों तक करनेवाले लोगों की विशेष दक्षता को देखते हुए ही भारतवर्ष में विभिन् न विज्ञानों और कलाओं को उनके विशेषज्ञों को सौंपते हुए जाति व् यवस् था की नींव डाली गयी थी।