ये सफेद दाग, श्लीपद (ऐलेफेन्टीज) तथा छाजन रोग को ठीक कर सकता है तथा इस प्रकार के रोगों को पाइपर मेथिस्टिकम औषधि भी ठीक कर सकता है।
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इसमें 1 ग्राम शहद और 3 ग्राम मिश्री मिलाकर सेवन करायें और साथ ही मदार की जड़ को छाछ में पीसकर श्लीपद पर गाढा लेप करें, 40 दिन में पूर्ण लाभ होता है।
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यह रोग अपने जीर्ण रूप में लसीका मार्गों के अवरोध के कारण श्लीपद पुरुषों में जल वृषण और गुरदे की क्षति में परिणित होते हुए बहुत अधिक शारीरिक विरूपण और विकलांगता उत्पन्न करता है।
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यद्यपि इसके कृमि और अंडों को मारनेवाली किसी भी औषध का ज्ञान नहीं हो पाया है, तथापि श्लीपद अवस्था उत्पन्न होने के पूर्व, जब इस रोग के अंडे रक्त और लसीका में भ्रमण कर रहे होते हैं, तब हेट्राज़ान (
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आयुर्वेद ने इसके तीन प्रकार बताए हैं-वातज श्लीपद: वात के कुपित होने पर हुए श्लीपद रोग में त्वचा रूखी, मटमैली, काली और फटी हुई हो जाती है, तीव्र पीड़ा होती है, अकारण दर्द होता रहता है एवं तेज बुखार होता है।
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आयुर्वेद ने इसके तीन प्रकार बताए हैं-वातज श्लीपद: वात के कुपित होने पर हुए श्लीपद रोग में त्वचा रूखी, मटमैली, काली और फटी हुई हो जाती है, तीव्र पीड़ा होती है, अकारण दर्द होता रहता है एवं तेज बुखार होता है।
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2. श्लीपद (हाथीपांव): विधाराबीज 2 से 4 ग्राम चूर्ण (विधारा बीजों को प्रयोग से पहले अपामार्ग का रस या लवणजल में भिगोकर धूप में सूखा लें), 7 से 14 मिलीलीटर गाय के पेशाब के साथ दिन में 2 बार पीना चाहिए।
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हालांकि, 5वीं सदी ईस्वी के वल्गेट (Vulgate) में लेविटिकस के “सारा'ट ” (“sara't ” of Leviticus) (पुराना करार) का अनुवाद “लेप्रा (lepra) ” के रूप में किया गया है, लेकिन सारा'ट (sara't) का लेवाइटिकस (Leviticus) में मिलने वाला मूल रूप सेल्सस (Celsus) व प्लाइनी (Pliny) द्वारा वर्णित श्लीपद (elephantiasis) नहीं था;
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(4) नित्यानंद रस, आरोग्यवर्द्धिनी और मेदोहर गुग्गुलु, तीनों की 1-1 गोली सुबह, दोपहर और शाम को पानी के साथ लें और निम्नलिखित लेप तैयार कर प्रतिदिन लेप करें-हल्दी, आंवला, अमरबेल, सरसों, अपामार्ग, रसोई घर की दीवारों पर जमा हुआ धुआं, सबको समभाग मिलाकर पीस लें, इस लेप को श्लीपद पर लगाएं।