वाल्मीकि और तुलसीदास एक दूसरे की रामायण को कैसा समझते! …. आजकल के एक श्रेष्ठ हिन्दी कवि ने रीतिकाल के कवियों को सँपेरा कह दिया.
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राजस् थान की कालबेलिया जाति की स् त्रियाँ सँपेरा नृत् य भी करती हैं और इस नृत् य के प्रदर्शन विदेशों में भी हुए हैं।
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प्रियं.: (पत्र लेकर राक्षस के पास आकर) महाराज! वह सँपेरा कहता है कि मैं केवल सँपेरा ही नहीं हूँ, भाषा का कवि भी हूँ।
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प्रियं.: (पत्र लेकर राक्षस के पास आकर) महाराज! वह सँपेरा कहता है कि मैं केवल सँपेरा ही नहीं हूँ, भाषा का कवि भी हूँ।
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ज़िन्दगी बड़ी कठिन है बेटे अपने आप मेें बुदबुदाया बूढ़ा सँपेरा पिटारे में बन्द साँप से ज़िन्दगी तमाशा नहीं है पर तमाशा ज़रूरी चीज़ है ज़िन्दगी के लिए।
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अगर इस शख़्स ने नीली जीन्स और जीन्स की जैकेट न पहन रखी होती तो अपने लम्बे बालों और बकरे जैसी दाढ़ी की वजह से वह कोई सँपेरा जान पड़ता।
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सँपेरा: (मन्त्री के सामने जाकर और देखकर आप ही आप) अरे यही मन्त्री राक्षस है! अहा!-लै बाम बाहु-लताहि राखत कंठ सौं खसि खसि परै।
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हमारे व्यक्तिगत चिट्ठे में ये शख्स कभी सँपेरा शेखीबाज के नाम से टिपियाता है तो कभी कम-पिटऊ-कर के नाम से लेकिन टिप्पणी का मजमून छद्म नाम की पोल खोल कर रख देता है।
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हमारे व्यक्तिगत चिट्ठे में ये शख्स कभी सँपेरा शेखीबाज के नाम से टिपियाता है तो कभी कम-पिटऊ-कर के नाम से लेकिन टिप्पणी का मजमून छद्म नाम की पोल खोल कर रख देता है।
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सँपेरा: मेरी ओर से यह बिनती करो कि मैं केवल सँपेरा ही नहीं हूँ किन्तु भाषा का कवि भी हूँ, इससे जो मन्त्री जी मेरी कविता मेरे मुख से न सुना चाहें तो यह पत्र ही दे दो पढ़ लें! (एक पत्र देता है)