हमे यह समझ लेना चाहिए कि यह महती कार्य बहुत कठिन है और सरल भी. कठिन इसलिए कि बहुधा देखा गया है कि समझदार लोग संकोचशील प्रवित्ति के होते है और किसी हद तक भीरू भी.
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ष्ट संकोचशील पुरुषों में जड़ता, धर्मभीरुओं में पाखंड, सत्य धर्म में स्थित रहने वालों में कपट, वीरों में क्रूरता, विद्वानों में मूर्खता, नम्र लोगों में दीनता, प्रभावशालियों में अहंकार, अच्छे वक्तओं में बकवास तथा धीर गंभीर रहने वालों में असमर्थता का दुर्गुण होने का बयान करते हैं।
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-किसी व्यक्ति विशेष के प्रति दुर्भावना पूर्ण विचारों को यहाँ महत्व नहीं दिया जाता और न ही यह ब्लॉग किसी ग्रुप अथवा विचारधारा का समर्थन करता है!-मेरे गीत पर प्रकाशित रचनाएं, किसी भी पुरस्कार अथवा प्रतियोगिता में शामिल होने के लिए, संकोचशील है...-ये खुद को किसी पुरस्कार के लायक नहीं समझतीं..
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नायक के प्रति जिस नायिका का व्यवहार सलज्ज और संकोचशील होता है उसे मुग्धा कहते हैं और उत्तरोत्तर बढ़ती घनिष्ठता से जब यह संकोच और लज्जा कमतर होने लगती है तो वह मध्या बन जाती है और पूर्णयौवना नायिका जब नायक के साथ निःसंकोच व्यवहार करने लगती है तो वह प्रगल्भा बन जाती है!
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नायक के प्रति जिस नायिका का व्यवहार सलज्ज और संकोचशील होता है उसे मुग्धा कहते हैं और उत्तरोत्तर बढ़ती घनिष्ठता से जब यह संकोच और लज्जा कमतर होने लगती है तो वह मध्या बन जाती है और पूर्णयौवना नायिका जब नायक के साथ निःसंकोच व्यवहार करने लगती है तो वह प्रगल्भा बन जाती है!
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‘‘ दुष्ट संकोचशील पुरुषों में जड़ता, धर्मभीरुओं में पाखंड, सत्य धर्म में स्थित रहने वालों में कपट, वीरों में क्रूरता, विद्वानों में मूर्खता, नम्र लोगों में दीनता, प्रभावशालियों में अहंकार, अच्छे वक्तओं में बकवास तथा धीर गंभीर रहने वालों में असमर्थता का दुर्गुण होने का बयान करते हैं।
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माता बच्चे की पारस्परिक क्रिया के बारे में अभी-अभी प्रकाशित एक विश्लेषण में अध्ययन में दर्शाया है कि बाल देख-रेख में नवजातों और शिशुओं द्वारा बिताए गए घंटो की संख्या को माता की अपने बच्चे के प्रति संवेदशीलता साथहीसाथ खेल में बच्चे की माता के साथ व्यस्तता के साथ संकोचशील ढंग से जोड़ा गया था।
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नायक के प्रति जिस नायिका का व्यवहार सलज्ज और संकोचशील होता है उसे मुग्धा कहते हैं और उत्तरोत्तर बढ़ती घनिष्ठता से जब यह संकोच और लज्जा कमतर होने लगती है तो वह मध्या बन जाती है और पूर्णयौवना नायिका जब नायक के साथ निःसंकोच व्यवहार करने लगती है तो वह प्रगल्भा बन जाती है! बहुत अच्छी लगी यह जानकारी.....
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नए मध्यवर्ती फ्रेम्स का निर्माण करने के लिए निकटवर्ती फ्रेम्स की विषयवस्तु का अंतर्वेशन; जब तक उच्च परिष्कृत गति-संवेदन कंप्यूटर एल्गोरिदम लागू न हो जाये, यह शिल्पकृति को प्रस्तुत करता है, और यहां तक कि सबसे संकोचशील ढंग से आँखों का प्रशिक्षित भी उस वीडियो को शीघ्रता से समझ सकता हैं जो प्रारूप के बीच परिवर्तित किया गया है.
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-किसी व्यक्ति अथवा राजनैतिक दल विशेष के प्रति दुर्भावना पूर्ण विचारों को यहाँ महत्व नहीं दिया जाता-यह ब्लॉग किसी राजनैतिक एवं धार्मिक विचारधारा, प्रांतीयता, जातीयता अथवा ग्रुप का समर्थन नहीं करता है!-मेरे गीत पर प्रकाशित रचनाएं, किसी भी पुरस्कार अथवा प्रतियोगिता में शामिल होने के लिए, संकोचशील है...-ये खुद को किसी पुरस्कार के लायक नहीं समझतीं..