युवावस्था से पहले ही स्त्री को अपने पिता के घर में अर्थशास्त्र, धर्मशास्त्र, कामशास्त्र तथा संगीतशास्त्र का अध्ययन करना चाहिए।
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संगीतशास्त्र के प्रसिद्ध आचार्यों में मुख्यत: उमामहेश्वर, भरत, नन्दी, वासुकि, नारद, व्यास आदि की गिनती होती है।
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राजपुत्रियों तथा मणिकाओं के कामशास्त्र तथा उसके अंगभूत संगीतशास्त्र की व्यावहारिक तथा तात्विक शिक्षा प्रदान करने की भारतीय प्रणाली बहुत ही प्राचीन है।
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इनके ग्रंथों में भारतीय संगीतशास्त्र, ज्ञान परम्परा, भक्ति साधना तथा जीवन दर्शन के विविध पक्ष गहनता से प्रकट हुए हैं ।
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जिस समाज में नर्तकों, गायकों, अभिनेताओं को हीन स्थिति में रखा जाये, उसमें संगीतशास्त्र का विकास कैसे हो सकता है?
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संगीतशास्त्र में अनुसंधानार्थ प्राचीन और मध्ययुगीन संस्कृत ग्रंथों के अध्ययन की अनिवार्यता दृढ़ स्वर से उद्घोषित की, एवं भावी अनुसंधान के लिए समस्याओं की तालिकाएँ प्रस्तुत कीं।
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हालांकि पढ़ाई के हमारे विषयों का परास विस्तृत था-इंग्लिश, गुजराती, मनोविज्ञान, सौन्दर्यशास्त्र, संसार का इतिहास और संगीतशास्त्र वगै़रह लेकिन ऐसा कभी नहीं लगा कि यह बोझ है।
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संगीतशास्त्र में अनुसंधानार्थ प्राचीन और मध्ययुगीन संस्कृत ग्रंथों के अध्ययन की अनिवार्यता दृढ़ स्वर से उद्घोषित की, एवं भावी अनुसंधान के लिए समस्याओं की तालिकाएँ प्रस्तुत कीं।
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संगीतशास्त्र में इसकी वादन विधि का विशद वर्णन कियागया है कि दायें हाथ से तंत्री को खींचना और बायें हाथ से उसे खिसकानातथा दोनों का समन्वय करना चाहिए.
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उन्होने संगीतशास्त्र पर “हिंदुस्तानी संगीत पद्धति” नामक ग्रंथ चार भागों में प्रकाशित किया और ध्रुवपद, धमार, तथा ख्यात का संग्रह करके “हिंदुस्तानी संगीत क्रमीक” नामक ग्रंथ के छह भाग प्रकाशित किए।