वैसे केदारनाथ अग्रवाल को प्रगतिशील कवि कहा जाता है परन्तु ' प्रेम ' पर, और वह भी पत्नी प्रेम पर लिखी कविता के कारण भले ही प्रगतिवादी उनसे चिढ़ते रहें हो, लेकिन पारिवारिक स्तर पर उन्होंने ऐसी कविताओं के माध्यम से अपनी जीवन संगीनी को सम्मान प्रदान कर अपने पारिवारिक उत्तरदायित्व का निर्वाह किया है।
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ईश्वर की असीम अनुकम्पा और आपके शुभाशीष से हमारी बिटिया............के शुभ-विवाह की अग्रिम मनुहार प्रेषित करते हुए असीम प्रसन्नता हो रही है.................(शहर का नाम) निवासी श्रीमान / श्रीमती.....................(समधी/दुल्हे के पिता-माता का नाम) ने अपने चिरंजीव...............(दुल्हे का नाम) की जीवन संगीनी और अपने परिवार की कुलवधू के रूप में............(बेटी का नाम) को चुना है.
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प्रियजन;ईश्वर की असीम अनुकम्पा और आपके शुभाशीष से हमारी बिटिया............के शुभ-विवाह की अग्रिम मनुहार प्रेषित करते हुए असीम प्रसन्नता हो रही है.................(शहर का नाम) निवासी श्रीमान / श्रीमती.....................(समधी/दुल्हे के पिता-माता का नाम) ने अपने चिरंजीव...............(दुल्हे का नाम) की जीवन संगीनी और अपने परिवार की कुलवधू के रूप में............(बेटी का नाम) को चुना है.
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दोस्ती होती है चंदा-कुमुदनी सी जुडती और फैलती धरा से गगन तक जाती पाति का भेद न जानती छोटे बड़े, अमीरी गरीबी सभी से हाथ मिलाती, हृदय है इसका विशाल सागर सा, नजरें हैं इसकी गहरी झील सी, अपने भीतर न अभिमान आने देती मित्रों की तकलीफों में स्वयं भावुक होती सुख दुःख की वो तो है जीवन संगीनी!!
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निमंत्रण-पत्रों का फ़ास्ट-फ़ूड..हिन्दी मज़मून बिटिया के ब्याह की अग्रिम मनुहार प्रियजन; ईश्वर की असीम अनुकम्पा और आपके शुभाशीष से हमारी बिटिया............के शुभ-विवाह की अग्रिम मनुहार प्रेषित करते हुए असीम प्रसन्नता हो रही है.................(शहर का नाम) निवासी श्रीमान / श्रीमती.....................(समधी/दुल्हे के पिता-माता का नाम) ने अपने चिरंजीव...............(दुल्हे का नाम) की जीवन संगीनी और अपने परिवार की कुलवधू के रूप में............(बेटी का नाम) को चुना है.
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रो रही है ' का अवसादी सुर फुलमतिया और उसकी धरती के प्रति ज़ाहिर वाजिब इज् ज़त नहीं है, इस सुर की संगीनी और नोंक उड़ीसा की तर्ज़ पर आला हाकिमों का वहां जीना हराम नहीं कर सकते? कुशीनगर के राजनीतिक सिपाही, माले के दस् ते फुलमतिया और मिसवाहुद्दीन अंसारी की तक़लीफ़ों अंधेरों को बेमतलब न करेंगे, आपकी लिखाई किसी लड़ाई की शुरुआत न करेगी?
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इजराए हुदूद (सीमाओं का प्रभावीकरण)-का मक़सद (उद्देश्य) यह है कि मुहर्रमाते इलाहिया (अल्लाह ध्दारा निषिद्घ व वर्जीत कार्यों) के मुर्तकिब होने वाले (कर्ताओं) को जुर्म की संगीनी (अपराध की भयंकरता) का एहसास दिलाया जाए ताकि वह सज़ा व उक़ूत के ख़ौफ़ (दण्ड एवं प्रताणना के भय) से मनहियात (वर्जित व निषिद्घ चीज़ों से) अपना दामन बचा कर रखे।
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बाज़ को उनके जिस्म की संगीनी ने हवा में बलन्द होकर तेज़ परवाज़ से रोक दिया है और वह सिर्फ़ ज़रा ऊंचे होकर परवाज़ कर रहे हैं और फिर अपनी लतीफ़ क़ुदरत और दक़ीक़ सनअत के ज़रिये उन्हें मुख़तलिफ़ रंगों के साथ मुनज़्ज़म व मुरत्तब किया है के बाज़ एक ही रंग में डूबे हुए हैं के दूसरे रंग का “ ााएबा भी नहीं है और बाज़ एक रंग में रंगे हैं लेकिन इनके गले का तौक़ दूसरे रंग का है।
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बीवी महज़ बीवी ही नहीं हुआ करती है संगीनी जीवन की, जीनेवाली मिल कर दुःख-सुख में, साथ देनेवाली मुआफिक एक दोस्त के, मानने वाली ' अपना ' खाविंद के परिवार को, जैसी आमदनी करनेवाली ख़ुशी ख़ुशी इन्तेजाम गृहस्थी का उसी में, देनेवाली सुन्दर संस्कार बच्चों को, दिखाने वाली सही राह परिवार को, संभालनेवाली कुनबे को वक़्त के धक्कों से, कर देनेवाली सकारात्मक स्पंदन घर के अपने मधुर स्वभाव और उन्नत संस्कारों से, साझीदार जिन्दगी की ना कि एक निर्भर प्राणी ……