(ग) मात्राओं से युक्त व्यंजन एवं संयुक्त व्यंजन तथा हिन्दी वर्तनी की अन्य विशेषताओं के अनुरूप वर्णों से बनने वाले शब्दों के अनुप्रयोगात्मक पाठों का निर्माण।
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क्ष, त्र, ज्ञ को भी संयुक्त व्यंजन की दृष्टि से अनावश्यक बताया जाता है किन्तु संयुक्त व्यंजन होते हुए भी आवश्यक है, जैसे क्षत्रिय, लक्षण, पक्ष, त्रिशूल, त्रिदेव, ज्ञान, विज्ञ आदि।
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क्ष, त्र, ज्ञ को भी संयुक्त व्यंजन की दृष्टि से अनावश्यक बताया जाता है किन्तु संयुक्त व्यंजन होते हुए भी आवश्यक है, जैसे क्षत्रिय, लक्षण, पक्ष, त्रिशूल, त्रिदेव, ज्ञान, विज्ञ आदि।
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(6) द्वित्व व्यंजन से पूर्व का दीर्घ स्वर ह्रास्व कर दिया जाता है एवं संयुक्त व्यंजन में से एक का लोप कर उससे पूर्व का ह्रस्व स्वर दीर्घ कर दिया जाता है।
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(6) द्वित्व व्यंजन से पूर्व का दीर्घ स्वर ह्रास्व कर दिया जाता है एवं संयुक्त व्यंजन में से एक का लोप कर उससे पूर्व का ह्रस्व स्वर दीर्घ कर दिया जाता है।
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2. 6.1.2 संयुक्त व्यंजन के रूप में जहाँ पंचम वर्ण (पंचमाक्षर) के बाद सवर्गीय शेष चार वर्णों में से कोई वर्ण हो तो एकरूपता और मुद्रण/लेखन की सुविधा के लिए अनुस्वार का ही प्रयोग करना चाहिए।
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2. 6.1.2 संयुक्त व्यंजन के रूप में जहाँ पंचम वर्ण (पंचमाक्षर) के बाद सवर्गीय शेष चार वर्णों में से कोई वर्ण हो तो एकरूपता और मुद्रण/लेखन की सुविधा के लिए अनुस्वार का ही प्रयोग करना चाहिए।
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अध्ययन के दौरान पाया गया कि विद्यार्थी मुख्यतः रेफ, मात्रा, अनुस्वार, अनुनासिकता, विसर्ग, संयुक्त व्यंजन, अक्षर विपर्यय, श ष एवं स के उच्चारण सम्बन्धी अशुद्धियाँ अधिक करते हैं ।
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वैसे तो जहाँ भी दो अथवा दो से अधिक व्यंजन मिल जाते हैं वे संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं, किन्तु देवनागरी लिपि में संयोग के बाद रूप-परिवर्तन हो जाने के कारण इन तीन को गिनाया गया है।
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अध्याय 2 वैसे तो जहाँ भी दो अथवा दो से अधिक व्यंजन मिल जाते हैं वे संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं, किन्तु देवनागरी लिपि में संयोग के बाद रूप-परिवर्तन हो जाने के कारण इन तीन को गिनाया गया है।