वनाधिकार कानून की समीक्षा के लिये वन-पर्यावरण और जनजातीय मंत्रालय की तरफ से बनाई गई संयुक्त समीक्षा समिति की रिपोर्ट आने के बाद जनजातीय मंत्री कांतीलाल भूरिया की उपस्थिति में दिए गए इस बयान को वनाधिकार कानून और इसके राजनैतिक महत्व को सत्ता के गलियारे में स्वीकार करने के संकेत के रूप में तो देखा ही जाना चाहिये, इसके अलावा इसे हमेशा हाशिये के लोग समझे जाने वाले आदिवासी, दलित व पिछड़े वर्गों की करीब 25 करोड़ की संख्या का राजनैतिक महत्व सरकार की समझ में आने के रूप में भी देखा जा सकता है।