तंतु काफी भंगुर थे और तंतु प्रकाशकीय केबलों के लिए अंत: योजकों में सूक्ष्म तरंग और विद्युत केबलों की तुलना में अधिक संवृति की यांत्रिक सह्यता की आवश्यकता थी।
22.
यद्यपि आचार्य शान्तरक्षित बाह्यार्थ नहीं मानते, फिर भी बाह्यार्थशून्यता उनके मतानुसार परमार्थ सत्य नहीं है, जैसे कि विज्ञानवादी उसे परमार्थ सत्य मानते हैं, अपितु वह संवृति सत्य या व्यवहार सत्य है।
23.
उनके अनुसार जिन सूत्रों का प्रतिपाद्य विषय परमार्थ सत्य अर्थात शून्यता, अनिमित्तता, अनुत्पाद, अनिरोध आदि हैं, वे नीतार्थ सूत्र हैं तथा जिन सूत्रों का प्रतिपाद्य विषय संवृति सत्य है, वे नेयार्थ सूत्र हैं।
24.
दिखावे इस मुखौटा के तहत अभिनय, बर्ताव सिर्फ उनकी भूमिका उसे कहा-इशारों और व्यवहार के द्वारा, के साथ झूठ बोल शरीर है, बस के रूप में दूसरों को उनके मुंह के साथ झूठ, छल दिखावट की सीमा, वह कुशलता चालाकी के साथ सच संयोजन और विश्वास संवृति की कला.
25.
संचार क्रांति का साहित्य पर क्या प्रभाव पड़ा यह जानने के लिए मुख्य संचार उपकरणों से किस तरह की संवृति यों का उदय हुआ? किस तरह साहित्य की धारणा बदली? और मौजूदा संचार क्रांति के कारण किस तरह का साहित्य और साहित्य रुपों का जन्म हुआ? यह जानना समीचीन होगा।
26.
जन्म से पूर्व गर्भित दशा में पंचस्कन्धों की संवृति नामरूप है, मन एवं इन्द्रियों वाला स्थूल शरीर षडायतन, सुखदु: खात्मक अनुभव वाली वेदना का पूर्वरूप स्पर्श, सुख-दु: ख की अनुभूति (मैथुनराग के पूर्व की अवस्था) का नाम वेदना, रूपादि कामगुण, मैथुन के प्रति राग और भोग की कामना तृष्णा, भोगसम्प्राप्ति हेतु पुद्गल का यत्न उपादान, इस प्रकार प्रभावित होकर अनागत भव हेतु किया गया कर्म भव, भरण के अनन्तर प्रतिसंधि, काल में पांचों स्कन्धों की अवस्था जाति, स्कन्धपरिपाक जरा और स्कन्ध नाश भरण् कहलाता है।