प्रणाम स्वामीजी, सारे नव-दम्पति को और इसमें भी खास तोर पर जो सगर्भा युवती हो उसको ओशो को सुनने चाहिए, क्योकि ओशोने कितने ही प्रवचनों में गर्भ से लेकर बालक का जन्म होने पर और बाद में माँ की भूमिका के बारे में बहुत कुछ कहा है.
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यद्यपि हमारी दो रानियां भाटी और हाड़ी सगर्भा हैं ; परन्तु ऐसे खोटे दिनों में क्या आशा की जाये कि उनके लड़का पैदा होगा? लेकिन यदि ईश्वर की कृपा हुई, और हमारी गद्दी का वारिश पैदा हुआ, तो यह कोई अनहोनी बात नहीं कि तुम लोगों की सहायता से औरंगजेब के हाथों से मारवाड़ को छुड़ा लें ; इसलिए हमारी अन्तिम आज्ञा है कि अपने राजकुमार के साथ वैसा ही बर्ताव करना, जैसा आज तक हमारे साथ करते आये हो।
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हमारे में एक कहेवत है, पुत्र के लक्षण पारना (बच्चे को जिसमे सुलाते है) में से. हमारी सोच को और विस्तार करे तो अब कहना होगा, माँ की सोच में ही बच्चे का दर्शन होता है और इसलिए धर का और धर के सभी का उस समय बहुत प्रवित्र, शांत, मधुर वातावरण चाहिए जिसका प्रभाव सगर्भा माँ पर होते हुए, एक नूतन सर्जन के लिए, इस महान यज्ञं में हमारी और से भी वह एक अर्ध्य हों यह बहुत प्रथम-पाया की बात है. धन्वाद. जय ओशो.