कहने का तात्पर्य यह कि यह राहुल के सियासी प्रशिक्षण का एक हिस्सा ही था कि जहां भी जाओ, वहां के लोगों को अपना सगा संबंधी समझो, मदद का आश्वासन दो पर वहां से रूखसत होते ही उस वायदे को पूरी तरह भूल जाओ।
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कभी-कभी नितांत अजनबी, अपरिचित चेहरों पर जैसा अपनत्व, जैसी गहन आत्मीयता, और जैसी एक कोमल सी अंतरंगता का मधुर सा प्रतिबिम्ब झलक जाता है वह उन चेहरों की रुखाई और अजनबियत से कितना अलग होता है ना जिन्हें ईश्वर ने आपका सगा संबंधी बना कर इस धरती पर भेजा है, और जिनके लिये आपने ना जाने कितनी कसमसाती रातों के अंधेरों की दहशत और कितने सुलगते दिनों की तपती धूप को उनकी हर विपदा में उनके साथ झेला है?