जिस ग्रंथ में सघोष महाप्राण ध्वनियां विद्यमान हों, उसी में भाषा का मूल रूप (समस्त या अधिकांश) मान लें।
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मैंने पाया-और इसे सभी भाषाविज्ञानी मानते हैं, कोई विवाद नहीं इसमें-कि सघोष महाप्राण ध्वनियाँ (जैसे घ, भ इत्यादि) केवल हिंदी, संस्कृत में हैं।
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इन उपस्वनों का केवल शब्दों के शुरू में प्रयोग होता है, औरमघ्य एवं अंत में दूसरे सहस्वन, सघोष अल्पप्राण रूप का प्रयोग होता है.
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इन उपस्वनों का केवल शब्दों के शुरू में प्रयोग होता है, औरमघ्य एवं अंत में दूसरे सहस्वन, सघोष अल्पप्राण रूप का प्रयोग होता है.
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भाषाशास्त्रियों का मत है कि द्वितीय स्तर के आदि मे क आदि अबोध वर्णों के स्थान पर ग् आदि सघोष वर्णो का उच्चारण होने लगा।
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मंद स्वर में बजाया जाने वाला मंद स्वर में बजाया जाने वाला अल्कोहल रहित स्वर वाला मद्धिम सुलभ अल्कोहल रहित लचीला सघोष नरमदिल मंदा अहानिकारक
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भाषाशास्त्रियों का मत है कि द्वितीय स्तर के आदि मे क आदि अबोध वर्णों के स्थान पर ग् आदि सघोष वर्णो का उच्चारण होने लगा।
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लेकिन हर देश में, हर समाज में, हर काल में, सघोष और उद्घोष शक्तियों के साथ ख़ामोश शक्तियां भी हुआ करती हैं।
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कमज़ोर / ढीला नरमदिल मंदा अहानिकारक मंद स्वर में बजाया जाने वाला मंद स्वर में बजाया जाने वाला अल्कोहल रहित मद्धिम सुलभ अल्कोहल रहित छोटा और मोटा गोल-मटोल सघोष गोलमटोल
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ये ध्वनियां हैं-फ़द्वयोष्ठ्य संघर्षी व्यंजन स्वनिम / ङ्/, ज़ जो कि दंत्य ध्वनि स का ही सघोष रूप है/ॅ/और कंठ्य ध्वनियां ख़/द्/अघोष कंठ्य संघर्षी, और इसी का सघोष ध्वनि रूप ग़.