अपरिग्रह परिग्रह पर भगवान महावीर कहते हैं जो आदमी खुद सजीव या निर्जीव चीजों का संग्रह करता है, दूसरों से ऐसा संग्रह कराता है या दूसरों को ऐसा संग्रह करने की सम्मति देता है, उसको दुःखों से कभी छुटकारा नहीं मिल सकता।
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पाश्चात्य कीमिया के जान कार जिन्हें वह फ्हिलोस्फोर भी कहते हैं, वे यही कहते हैं की इस प्रकृति के प्रत्येक सजीव या निर्जीव में पारद और गंधक का अंश होता ही है फिर वो चाहे, जानवर हो, मौसम हो या जलचर.
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चुकि मैं भी एक हिन्दु हूं इसलिए अपने धार्मिक ग्रंथों के आधार पर यह प्रामाणिकता से यह कह सकता हूँ कि इस दुनिया या दुनिया से बाहर, ज्ञात या अज्ञात जो भी सजीव या निर्जीव वस्तुएं हैं, बेकार नहीं हैं।
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परिग्रह पर भगवान महावीर कहते हैं जो आदमी खुद सजीव या निर्जीव चीजों का संग्रह करता है, दूसरों से ऐसा संग्रह कराता है या दूसरों को ऐसा संग्रह करने की सम्मति देता है, उसको दुःखों से कभी छुटकारा नहीं मिल सकता।
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2. जल जल ही जीवन है इसमे मे कितनी सच्चाई है इसका अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि किसी सजीव या निर्जीव वस्तु का अस्तित्व ‘ जल ' के बिना नही रह सकता और वह जल्द समाप्त हो जाती है।
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किसी भी सजीव या निर्जीव वस्तु में किसी एक कंपनशक्ति की अधिकता होती है तथा किसी एक कंपनशक्ति की कमी होती है इसी प्रकार मनुष्य में जन्म के समय ग्रहों की दशा के अनुसार इनमें से किसी कंपनशक्ति की अधिकता या कमी पायी जाती है।
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अन्नं वा अणुजाणाइ एव्रं दुक्खाण मुच्चइ॥ ” जो आदमी खुद सजीव या निर्जीव चीजों का संग्रह करता है, दूसरों से ऐसा संग्रह कराता है या दूसरों को ऐसा संग्रह करने की सम्मति देता है, उसका दुःख से कभी भी छुटकारा नहीं हो सकता।
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सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का उदाहरण देते हुए अधिवक्ता जगदीश यादव कहते है कि दानदाता के विवेक पर निर्भर रहता है कि वह दान में दी गई सजीव या निर्जीव वस्तु को जब चाहे तब अपने पक्ष में वापसी के लिए कार्रवाही कर सकता है।
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अन्नं वा अणुजाणाइ एव्रं दुक्खाण मुच्चइ॥ परिग्रह पर महावीर स्वामी कहते हैं जो आदमी खुद सजीव या निर्जीव चीजों का संग्रह करता है, दूसरों से ऐसा संग्रह कराता है या दूसरों को ऐसा संग्रह करने की सम्मति देता है, उसका दुःख से कभी भी छुटकारा नहीं हो सकता।
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पति के राक्षस होने के बावजूद भी वह अपने पति में अटूट श्रद्धा एवं विश्वास रखती थी, उसे देवताओ का वरदान था कि जब तक सती वृंदा का ध्यान अपने पति से भंग नहीं होगा, कोई भी सजीव या निर्जीव शंखचूड़ को मार नहीं सकता.