सरसराते पन्नों की गलियों के अंधेरों के पार किताबें दीखीं जिनके बालों में एक उम्र से तेल न पड़ा था, सफ़री झोले में संतरों के ताज़ा छिलके और गंदे नाख़ूनों की पपड़ियां और एक जोड़ी नये मोज़े, सपनों की चंद जवान कमीज़ें दिखीं, अलसाई, जो किन्हीं और शहरों में खरीदी किन्हीं और शहरों भूल आया था.
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फिर आप निष्कर्ष निकालकर गला फंसाने से भी डर रहे है और अच्छे-बुरे का वैल्यू जजमेंट भी नहीं करना चाहते. ऐसे में बताइये इस सफ़र में कुछ सफ़री लतीफ़ों के अलावा आप क्या करने वाले हैं.कहिये कि इस सफ़र में साम्राज्यवाद, उदारीकरण, राजनीतिक दीवालियापन, शोषण और साम्प्रदायिकता आदि दुनिया के पिछवाड़े फेंक दिये गये शब्द भी सुनने को मिलेंगे या एक सहमतियों का सुविधाजनक व्याकरण ही छाया रहेगा?
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मैं उठाता हूं जाम उनके नाम जो मेरी तरह देखते हैं एक तितली के ख़ुशनुमा सात रंग ख़त्म न होनेवाली रात की इस सुरंग़ में * मैं उठाता हूं जाम उसके नाम जो मेरे साथ उठाता है जाम इस घनी स्याह रात में इतनी घनी रात कि एक दूसरे को देखना भी मुहाल उठाता हूं जाम अपने साये के नाम * अमन क्या है उस तरफ के एक सफ़री के लिए बस, इक मुसाफ़िर को सुनना खुद से कहते हुए
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दूसरी गाड़ियाँ या तो गया होते हुए कलकत्ते का रुख़ करती थीं, या फिर रात के ऐसे प्रहरों में इलाहाबाद से हो कर गुज़रती थीं, जब किताबों या किसी और चीज़ के एजेण्ट या सफ़री सेल्समैन तो गाड़ी में सवार होने की सोच सकते थे ताकि अगली सुबह समय से ही ‘ नया स्टेशन कर सकें, ' मगर लेखकों के लिए, और ख़ास तौर पर ऐसे लेखकों के लिए जो युवा लेखक सम्मेलन में शामिल होने पटना जा रहे हों, ऐसी ज़हमत और फ़ज़ीहत मोल लेना एक नितान्त असाहित्यिक उपक्रम माना जा सकता था।