यह हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं हो सकता, ये स्वरुप बदला गया है १ ३ दिन बाद शोक सभा करना उस व्यक्ति के जीवन की चर्चा कर प्रेरणा लेकर उस परिवार के मुखिया को सान्तवना, शक्ति प्रदान करने के उद्देश्य से इस प्रकार की व्यवस्था की गयी होगी इसका वास्तविक स्वरुप बदल गया है जो फिर से लाना होगा!
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वो दौड़ लगाना, छुक-छुक करती रेल की तरह भागते जाना, तालाबों, खेतों-खलिहानों के बीच दौड़ते जाना, जाड़े के दिनों में हांडी में आलू रख औंधा लगाना, हवाओं से भी तेज भागते हुए, उसकी खिल्ली उड़ाना, अपने बाल दोस्तों के बीच सभा करना, मस्ती के आलम में डूबे रहना, बिजली कटने के बाद, बिजली आने पर हंगामा मचाते हुए, घर की ओर लौटना....