दियो की रोशनी शाम के समय द्वार पर पूरी कोशिश कर रही थी कि पूरा दालान झक्क से रोशन कर दे पर कहा उस दिए की ताकत पर हाँ उसके जज्बे को सलाम करके लौट आया हर बार मै.........
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काल-चक्र के अन्तराल में, सब मिट जाना,फिर क्यों ऐंठे? आँखें सदा प्रतीक्षारत हैं,हम आने के क्रम में बैठे रह रह कर फिर समय द्वार का सांकल,प्रिये! बजाती क्यों हो? फिर मुझ से छुप जाती क्यों हो?
23.
दो बार तुम्हारे द्वार आया पर तुम मिले ही नहीं कही तालो में बंद और चाभी भी नहीं....दियो की रोशनी शाम के समय द्वार पर पूरी कोशिश कर रही थी कि पूरा दालान झक्क से रोशन कर दे पर कहा उस दिए की ताकत पर हाँ उसके जज्बे को सलाम करके लौट आया हर बार मै.........एक उम्मीद में कि शायद अगली बार तुम दरवाजे पर मिल जाओ.............
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लेकिन दुर्भाग्य कि उस द्वार पर उसके सिर पर खुजली आ गयी! वह खुजलाने लगा और उस समय द्वार से आगे निकल गया और फिर वह बंद द्वारों पर भटकने लगा! अगर आप देख रहे हों उस आदमी को तो मन में क्या होगा? कैसा अभागा था कि बंद द्वार पर श्रम किया और खुले द्वार पर भूल की-जहाँ से कि बिना श्रम के ही बाहर निकला जा सकता था?