लेकिन राजनीति दर्शन के रूप में जिस समष्टिवाद पर यहां विचार किया जाना है, वह उनीसवीं शताब्दी की संकल्पना है.
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‘ साम्यवाद ' के संबंध मे भी मेरा दृष्टिकोण सुदृढ़ है कि यह हमारे प्राचीन ‘ समष्टिवाद ' का आधुनिक पाश्चात्य रूप है।
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कितु रूसो स्वयं आलोचकों द्वारा वर्णित समानता की उत्पत्ति के घोर व्यक्तिवाद और “सामाजिक प्रसंविदा ' के घोर समष्टिवाद के परस्पर विरोध को नहीं मानता।
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कितु रूसो स्वयं आलोचकों द्वारा वर्णित समानता की उत्पत्ति के घोर व्यक्तिवाद और “सामाजिक प्रसंविदा ' के घोर समष्टिवाद के परस्पर विरोध को नहीं मानता।
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परंतु उसी रूप मे जैसा समष्टिवाद हमारे यहाँ था पाश्चात्य साम्यवाद न होना ही वह कारण रहा कि सोवियत रूस से साम्यवादी व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई।
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वस्तुतः ' साम्यवाद ' = ' समष्टिवाद ' मूल रूप से भारतीय अवधारणा है और इसे लागू भी तभी किया जा सकेगा जब हकीकत को समझ लिया जाएगा।
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भारत केसंयुक्त परिवार समष्टिवाद के प्रतीक हैं, व्यष्टिवाद के नहीं किन्तुपाश्चात्य सम्पर्क और वर्तमान शिक्षा प्रणाली के कारण देश की नई पीढ़ीमें भौतिकवादी तथा व्यक्तिवादी विचारधाराएँ अधिकाधिक पनप रही हैं.
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अंतरमहाद्वीपीय, एक विशाल रेल कंपनी मूल रूप से उसके दादा ने बीड़ा उठाया है का संचालन उपाध्यक्ष, मुश्किल आर्थिक समष्टिवाद और सांख्यबाद से चिह्नित समय के दौरान कंपनी को जीवित रखने के प्रयास करता है.
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इस घूंघट सकता है, एक सचेत स्वयं की अभिव्यक्ति-विनियमन और प्रतिरोध करने के लिए assimilationism दूसरी तरफ, यह कर सकते हैं पर पर भी अपनी दमनकारी समष्टिवाद की अभिव्यक्ति व्यक्त करते हैं.
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रूस नंबर ' निकाला तो प्रेमचंद ने लिखा कि ‘‘ वह कौन-सी ऐसी सामाजिक, राजनीतिक, भावनात्मक दशाएं थीं, जिन्होंने रूस में समष्टिवाद को स्थापित किया? इतने महान परिवर्तन केवल पुस्तकों से नहीं हो जाते।