इच्छा थी कि सबके अन्त में, अपने सहृदय पाठकों और साहित्यिक बन्धुओं के सम्मुख ‘ साकेत ' समुपस्थित करके अपनी दृष्टता और चपलताओं के लिए क्षमा याचना पूर्वक विदा लूँगा।
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* कोई हेतु उपाधि के होने मात्र से व्यभिचारी एवं उपाधि के न होने से अव्यभिचारी या सद्धेतु कैसे और क्यों हो जाता है यह प्रश्न सहज रूप में समुपस्थित होता है।
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आज जब देश में सभी सज्जन शक्तियों के सम्मेलन और सामाजिक समस्याओं पर एक वृहद् मंथन का आयोजन किया जा रहा है, ऐसे में भारत विकास संगम की भूमिका कूर्मावतार की तरह से समुपस्थित हुई है।
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आज जब देश में सभी सज्जन शक्तियों के सम्मेलन और सामाजिक समस्याओं पर एक वृहद् मंथन का आयोजन किया जा रहा है, ऐसे में भारत विकास संगम की भूमिका कूर्मावतार की तरह से समुपस्थित हुई है।
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अत्यंत आवेश अथवा उत्तेजना के कारण युद्ध की स्थिति समुपस्थित हो जाने पर भी किसी न किसी बहाने संघर्ष का टल जाना और किसी महात्मा के वध की पूरी तैयारी हो जाने पर भी उसे बचा लिया जाना प्राय: इस रूपक में दिखाया जाता है।
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मैंने अचानक ही समुपस्थित इस मनो-देवि को काफी मनाया भी कि देखो तुम इस विषय में हेल्प के लिए मुझे छोड़ दो ब्लागरों की मदद ले सकती हो-एक तो अपने समय जी हैं और दूजे अपनी एल गोस्वामी-ये दोनों ही विद्वानों द्वारा अनुशंसित श्रेष्ठ मनोविज्ञान लेखक हैं और इस विषय पर इन दिनों ये सोलो लेखन भी कर रहे हैं... मतलब अपडेट हैं...
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अब उन्हें कितने विशेषणों से नवाजू-कुछ धर्मसंकट समुपस्थित हैं-एक तो अनुज की भार्या और दूसरे नारी! यहाँ ब्लागजगत में ऐसे लोग भरे पड़े हैं कि सहज ही व्यक्त बातों को भी औचित्य-अनौचित्य, शील अश्लील के बटखरे से तौलने लगते हैं! मगर अपनी बात तो कहूँगा ही और कुछ अनुज से उनके ही प्रदत्त अधिकार / लिबर्टी का सदुपयोग करते हुए! रचना त्रिपाठी का व्यक्तित्व पहले.
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पहली तो वह जो वर्तमान के मिलन स्थल के नष्ट हो जाने से दुखी हो जाती है और दूसरी इस आशंका से की कालांतर में किसी भी कारण (जैसे किसी अन्य से विवाह के कारण) पूर्व प्रेमी से किसी उपयुक्त मिलन स्थल के अभाव के कारण मिलना न हो सकेगा! और तीसरी अनुशयाना नायिका वह जो किसी बाधा के समुपस्थित हो जाने से संकेत / अभिसार / मिलन स्थल पर न पहुँच पाने की व्यथा से उद्विग्न हो गयी है!
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मैं कृतित्व से बढ़कर किसी भी रचनाकार के व्यक्तित्व को सर माथे रखता हूँ (लोग लुगाई नोट कर लें ताकि सनद रहे) और तिस पर यदि कृतित्व भी बेहतर हो जाय तो फिर पूंछना ही क्या? सोने में सुगंध! कुछ ऐसी ही हैं मेरी प्रिय चिट्ठाकार सुश्री रचना त्रिपाठी.अब उन्हें कितने विशेषणों से नवाजू-कुछ धर्मसंकट समुपस्थित हैं-एक तो अनुज की भार्या और दूसरे नारी!यहाँ ब्लागजगत में ऐसे लोग भरे पड़े हैं कि सहज ही व्यक्त बातों को भी औचित्य-अनौचित्य,शील अश्लील के बटखरे से तौलने लगते हैं!