राजभवन (लखनऊ) के इस छल-कपट की शतरंजी चालों से आवेदक को यह स्पष्ट हो गया कि महामहिम राज्यपाल भी लोकआयुक्त प्रशासन जैसी संस्था में व्याप्त भ्रष्टाचारों पर विधि सम्मत निर्णय लेनें का या तो साहष नहीं जुटा पा रहे हैं या फिर लोकआयुक्त प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार उनकी निगाह में क्षम्य है या फिर जायज है।
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इस प्रकार जब विपक्ष के प्रति घृणा और हिकारत तथा आत्मपक्ष के प्रति श्रद्धा और सम्मान का भाव बद्धमूल कर दिया जाय तो न्याय और अन्याय का विवेक सम्मत निर्णय आस्था का प्रश्न बन जाता है जो अंधश्रद्धा की ओर ले जाता है और ऐसी स्थिति में अपना पक्ष न्याय का पक्ष और विपक्ष पूरी तरह अन्याय का पक्ष बन कर रह जाता है।
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इस प्रकार जब विपक्ष के प्रति घृणा और हिकारत तथा आत्मपक्ष के प्रति श्रद्धा और सम्मान का भाव बद्धमूल कर दिया जाय तो न्याय और अन्याय का विवेक सम्मत निर्णय आस्था का प्रश्न बन जाता है जो अंधश्रद्धा की ओर ले जाता है और ऐसी स्थिति में अपना पक्ष न्याय का पक्ष और विपक्ष पूरी तरह अन्याय का पक्ष बन कर रह जाता है........