बहरहाल, सरल मति की दूसरों में तलाश करते हुए, हम अपने को बख्सते चलते हैं... यह “अपनों” और “दूसरों” का संबंध जितना समस्या भरा है सो तो है ही, पर मैंने सरलमति निष्कर्ष 'कविता'में पाया है, कवि में नहीं यह आप पढ़ना नहीं चाहते हैं और जिसे सरलमति निष्कर्ष कहा गया है वह सरलमति है कि नहीं इसका कोई खंडन नहीं है, “निर्णय” बहुत हैं आपको इस बात का भी मलाल कि प्रगतिशीलता की अपनी कचहरी क्योंकर है और वहां इतने पतन के बावजूद ज़िन्दा बहसें क्यों हो रही हैं...यानि उन्हीं के बीच...
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बहरहाल, सरल मति की दूसरों में तलाश करते हुए, हम अपने को बख्सते चलते हैं... यह “अपनों” और “दूसरों” का संबंध जितना समस्या भरा है सो तो है ही, पर मैंने सरलमति निष्कर्ष 'कविता'में पाया है, कवि में नहीं यह आप पढ़ना नहीं चाहते हैं और जिसे सरलमति निष्कर्ष कहा गया है वह सरलमति है कि नहीं इसका कोई खंडन नहीं है, “निर्णय” बहुत हैं आपको इस बात का भी मलाल कि प्रगतिशीलता की अपनी कचहरी क्योंकर है और वहां इतने पतन के बावजूद ज़िन्दा बहसें क्यों हो रही हैं...यानि उन्हीं के बीच...