जैसे तुम? उसके सामने बहुत से सवाल ख़ुद अपने जवाब ढूँढ लेते मौन अनुभवों की अभिव्यक्ति और शब्दों की बेचारगी भी थी...तभी किसी फूल का नाम याद करना उसके रंग खुशबू से अपने को सराबोर करना और एक संभावना के बीच ना ख़त्म होने वाली भीतर की यात्रा करना.जिसका गंतव्य ना था,कहाँ जीना-मरना होगा ये भी अनिश्चित था बहुत कुछ खोया हुआ छूटा हुआ पाने की भी जद्दो-जहद ना थी-बस बचे हुए हम मैं हमी...मन की वृतियों और इच्छाओं से संचालित एक सुखद अभ्यास था,उनदिनो-हर दिन एक निर्णायक उतार-चढाव से भरा हुआ...