जहाँ कसैली नीम की मेरे और उसके खेतों का सीमंकन करती उसी के धोँधड़ में के जानी चिड़िया कि बन्दर कि हवा ने गिरा दिया था एक बीज यूँ ही कि जिसकी जड़े चीरती चली गईं थीं नीम को खोखल करती आपस में साँप की तरह लिपटती पृथ्वी नहीं एक गात की तलाश में कुंडली मारकर बैठती मैथुन में लिप्त सरिसृप की तरह