जनमेजय का सर्पयज्ञ इसी स्थान पर हुआ था [10] महाभारत अथवा रामायण में इसके विद्याकेन्द्र होने की चर्चा नहीं है, किन्तु ई.पू. सप्तम शताब्दी में यह स्थान विद्यापीठ के रूप में पूर्ण रूप से प्रसिद्ध हो चुका था तथा राजगृह, काशी एवं मिथिला के विद्वानों के आकर्षण का केन्द बन गया था।
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जब मैंने काफी बड़ा होकर ÷ महाभारत ' पढ़ा तब जाकर यह गुत्थी सुलझ पायी, वह भी यह जानने पर कि पौराणिक वीर अर्जुन के पौत्रा राजा परीक्षित के बेटे का नाम जनमेजय था, जिन्होंने सांपों को मारने का एक ÷ सर्पयज्ञ ' करा कर उन्हें हवनकुंड में जला दिया था।