हरियाली से भरे एक पारंपरिक छोटे से जंगल (अधिकतर मानव निर्मित) “सर्प कवु” (अर्थात सर्प देवता का आवास) में पूजा के लिए सर्प देवता की मूर्तियां रखी जाती थीं.
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हल्दी-रोली, चावल और फूल आदि चढ़ाकर नाग देवता की पूजा करने के बाद कच्चा दूध, घी और चीनी मिलाकर इस रस्सी को सर्प देवता को अर्पित किया जाना चाहिए।
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ग्रामीणों की मनुहार पर यह सर्प पेड़ की टहनी से उतरकर पुजारी के हाथ में रखी फूल-पत्तियां की ‘ ठांगली ' (डलिया) में आ जाता है और इसी के साथ शुरू हो जाती है दहेलवालजी रूपी इस सर्प देवता की शोभायात्रा।
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इस बीच सर्प देवता देव कालजयी चिरायु इच्छाधारी नागों के शासक राजा मणिराज और उनकी पत्नी मणिका रानी के सपनों में प्रकट हुए, जो मानवीय दृष्टि से ओझल नागद्वीप नामक हिन्द महासागर के एक द्वीप में छिप कर जीवन बिता रहे थे.उन्होंने शिशु का स्थान बताया और उनसे उसका इलाज करने के लिए कहा.
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अज्ञात कारणों से पुरोहित ने एक झूठी कहानी सुनाई कि शिशु एक ऐसी महिला का है जिसका बलात्कार हुआ था, और जो सर्प देवता की भक्तिन थी और शिशु को इच्छाधारी नाग बनने का आशीर्वाद प्राप्त है, और उन्होंने नागमणि से अनुरोध किया कि वे उसका पालन-पोषण कुछ इस तरह करे कि वह अपनी मां का बदला ले सके.