| 21. | वेदान्तियों ने आत्मा को सर्वगत माना है और मीमांसक मुक्तावस्था में ज्ञान नहीं मानते।
|
| 22. | कर्म का उद्रव ज्ञान से ज्ञान है ब्रम्ह प्रसूत अतः ब्रम्ह है सर्वगत, सतत यज्ञ संभूत।।15।।
|
| 23. | १. कर्मबन्धन से रहित आत्मा केवलज्ञान के द्वारा लोकालोक को जानती है, अतः ज्ञानापेक्षया सर्वगत है।
|
| 24. | फिर यहाँ वही अर्थ क्यों नहीं किया जाए? तीसरे अध्याय में भी ब्रह्म का विशेषण सर्वगत है।
|
| 25. | १. कर्मबन्धन से रहित आत्मा केवलज्ञान के द्वारा लोकालोक को जानती है, अतः ज्ञानापेक्षया सर्वगत है।
|
| 26. | साधर्म्यः-प्रकृति एवं पुरुष दोनों अनादि, अनन्त, निराकार, नित्य, अपर तथा सर्वगत एवं सर्वव्यापक है ।
|
| 27. | बस जो समस्त विरुद्ध कल्पनाओं का अधिष्ठान, सर्वगत, असंग अप्रमेय और अविकारी आत्मतत्त्व है, एक मात्र वही सदृस्तु हैं।
|
| 28. | वह भगवान् सम्पूर्ण जीवों के अन्त: करणों में स्थित और सर्वव्यापी है ; इसलिए सर्वगत और मंगलरूप (शिव) है.
|
| 29. | यह अच् छेदय्, अदाह्य एवं अशोष् य होने के कारण नित् य, सर्वगत, स् थिर, अचल एवं सनातन है।
|
| 30. | वर्ण को नित्य, सर्वगत और निरवयव स्वीकार किया गया है. उच्चरित वर्ण उसकी ध्वनि से भिन्न है और लिखित वर्ण उसके रूप से भिन्नहै.
|