रवि निकलता लाल चिन्ता की रुधिर-सरिता प्रवाहित कर दीवारों पर, उदित होता चन्द्र व्रण पर बांध देता श्वेत-धौली पट्टियाँ उद्विग्न भालों पर सितारे आसमानी छोर पर फैले हुए अनगिन दशमलव से दशमलव-बिन्दुओं के सर्वतः पसरे हुए उलझे गणित मैदान में मारा गया, वह काम आया, और वह पसरा पड़ा है…
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रवि निकलता लाल चिन्ता की रुधिर-सरिता प्रवाहित कर दीवारों पर, उदित होता चन्द्र व्रण पर बांध देता श्वेत-धौली पट्टियाँ उद्विग्न भालों पर सितारे आसमानी छोर पर फैले हुए अनगिन दशमलव से दशमलव-बिन्दुओं के सर्वतः पसरे हुए उलझे गणित मैदान में मारा गया, वह काम आया, और वह पसरा पड़ा है...
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रवि निकलता लाल चिन्ता की रुधिर-सरिता प्रवाहित कर दीवारों पर, उदित होता चन्द्र व्रण पर बाँध देता श्वेत-धौली पट्टियां उद्विग्न भालों पर सितारे आसमानी छोर पर फैले हुए अनगिन दशमलव से दशमलव-बिन्दुओं के सर्वतः पसरे हुए उलझे गणित मैदान में मारा गया, वह काम आया, और वह पसरा पड़ा है …
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इन कर्मों मैं बंधे रहोगे, तो ऊपर कब उठ पाओगे, ओ' अर्जुना, सत्व, रजो, तमो इनसे उपर उठो, और जों नीत नूतन स्थीत है, उस को देखो || यावानार्था उदापाने सर्वतः सम्प्लुतोदाके तावान्सर्वेशुवेदे शु ब्राह्मनास्य विजानातः (२.४६) || बुद्ही और होशियारी || श्री कार्तीकेय ने सारे वीश्व की लंबी फ़ेरी लगाई श्री गणेश जी ने माँ को प्यारी सी फ़ेरी लगाई...
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दिल्ली में यमुना का तीर, ढाई कमरे का सर्वतः सम्पूर्ण मकान, पास में ढाई सौ रुपये, अपरिचित इसलिए स्वछन्द वातावरण, और सप्तर्णी की छाँह-अगर देवता हैं तो उन्हें धन्यवाद कि यह सम्भव हुआ है, कि शशि की वत्सल छाँह में वह खड़ा हो सका है और अपने को उस वात्सल्य के प्रति उत्सर्ग कर सका है...