हिंदू धर्म में ईश्वरवाद और अनीश्वरवाद दोनों का, सर्वेश्वरवाद और बहुदेववाद दोनों का, आवागमन और परलोकवाद दोनों का, शाकाहार और मांसाहार दोनों का ऐसा अद्भुत समावेश किया गया है कि मैं नहीं समझ पा रहा हूँ कि यह एक प्राचीन सभ्यता का असीम औदार्य है या शेखचिल्लीपन।
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यह आर्यों के जीवन तथा मानसिक जीवन के सादगी (अनुभवहीनता) से दार्शिनक सूझबूझ तक विकसित होने की सीढ़ियों को चित्रित करता है, तथा इसमें कुछ प्रार्थनाएं हैं जो संदेह और आशंका पर निष्कर्षित होती हैं, तथा इसमें ऐसा देवत्वारोपण पाया जाता है जो वहदतुल वजूद (सभी अस्तित्व के एक होने या सर्वेश्वरवाद) तक पहुँचता है, यह चार पुस्तकों से मिलकर बना है।
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आधुनिक पश्चिमी दर्शन की बात करें तो वह मुख्यतः संदेहवाद (डेविड ह्यूम), अनुभववाद (जाॅन लाक), समीक्षावाद (इमानुएल कांट), अवयवीवाद (ह्नाइटहैड), विकासवाद (डार्विन, हर्बट स्पेंसर), सर्वेश्वरवाद (स्पिनोजा), यथार्थवाद (रसेल), चिद्बिंदुवाद या आध्यात्मिक बहुत्वाद (लाइबिनित्जि), अस्तित्ववाद (किर्कगाद, सार्त्र), व्यवहारवाद (विलियम जेम्स) आदि दर्जनों धाराओं में बंटा हुआ है.