१८१८ ई. से सल्फर डाइऑक्साइड की प्राप्ति के लिए कच्चे माल गंधक के स्थान पर पाइराइटीज़ नामक खनिज का प्रयोग होने लगा।
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इसका कारण यह है कि सर्दी में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड गैस, सल्फर डाइऑक्साइड तथा ओजोन गैस की मात्रा प्रदूषण से बढ़ जाती है।
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इंडियनऑयल रिफाइनरियों में सल्फर डाइऑक्साइड के उत्सर्जन पर्यावरण और वन मंत्रालय और राज्य प्रदूषण बोर्डों द्वारा निर्धारित सीमाओं से कहीं अधिक नीचे हैं।
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सघन CO 2 परत के ऊपर घने बादल हैं जो मुख्य रुप से सल्फर डाइऑक्साइड और सल्फ्यूरिक अम्ल की बूंदों से मिलकर बने है ।
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मेडिसीन के डॉक्टर अनिल बंसल का कहना है कि पटाखे के धुएं से वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड तथा सल्फर डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है।
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बहुल वायुमंडल, सल्फर डाइऑक्साइड के घने बादलों के साथ-साथ, सौर मंडल का सबसे शक्तिशाली ग्रीन हाउस प्रभाव उत्पन्न करता है, और कम से कम 462
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वाइन के कंटेनरों में से हवा को पूरी तरह निकाल लेने के अलावा सल्फर डाइऑक्साइड मिलाने से जीवाणुओं के विकसित होने की गति नियंत्रित हो जाती है.
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वाइन के कंटेनरों में से हवा को पूरी तरह निकाल लेने के अलावा सल्फर डाइऑक्साइड मिलाने से जीवाणुओं के विकसित होने की गति नियंत्रित हो जाती है.
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भी अनुमान है कि सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्सर्जन से इन प्रकार की कमी होगी बिजली उत्पादन तकनीक के द्वारा 65 % और 44 % क्रमशः (
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धुएं में पाए जाने वाले सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रो ऑक्साइड जैसे केमिकल एलिमेंट की वजह से अस्थमा, लंग्स, सांस संबंधी, हार्ट, आंख, चेस्ट वगैरह की दिक्कतें हो सकती हैं।