नैदानिक मनोविज्ञान-न्यूरोटिसिज्म, साइकोन्यूरोसिस, साइकोसिस जैसी क्लीनिकल समस्याओं एवं शिजोफ्रेनिया, हिस्टीरिया, ऑब्सेसिव-कंपलसिव विकार जैसी समस्याओं के कारण क्लीनिकल मनोवैज्ञानिक की आवश्यकता दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है।
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हैनिमैन ने पाया कि सभी पुराने रोगों के आधारभूत कारण सोरा (psora), साइकोसिस (sycosis) और सिफ़िलिस (syphlis) हैं ।
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न्यूरोटिसिज्म, साइकोन्यूरोसिस, साइकोसिस जैसी क्लीनिकल समस्याओं एवं शिजोफ्रेनिया, हिस्टीरिया, ऑब्सेसिव-कंपलसिव विकार जैसी समस्याओं के कारण क्लीनिकल मनोवैज्ञानिक की आवश्यकता दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है।
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आरएएस कुशवाहा के अनुसार पूर्व में कई ऐसे मामले रिपोर्ट किए गए जिसमें लम्बे समय तक टीबी की दवा खाने से मरीज को साइकोसिस (पागलपन) की बीमारी हो गयी।
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अब हम साइकोसिस रोगों के उस समूह की ओर ध्यान देंगे जो मनुष्य को काल्पनिक छविओं और ध्वनिओं से रूबरू करवाता है, जबकि उसका कोई स्रोत अथवा कारण नही होता.
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नैदानिक मनोविज्ञान-न्यूरोटिसिज्म, साइकोन्यूरोसिस, साइकोसिस जैसी क्लीनिकल समस्याओं एवं शिजोफ्रेनिया, हिस्टीरिया, ऑब्सेसिव-कंपलसिव विकार जैसी समस्याओं के कारण क्लीनिकल मनोवैज्ञानिक की आवश्यकता दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है।
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फीयर साइकोसिस यानी डर के मरीज तो वे पहले से ही थे, भूलने की गंभीर बीमारी उन्हें हो गयी थी जिसके कारण वे हमेशा परेशान रहे और असहज जीवन जीने को मज़बूर रहे।
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पहले एपिसोड की मनोविकृतियों में आदार मनोरोग प्रतिरोधी दवाओं (साइकोसिस टिपिकल एंटीसाइकोटिक्स) जैसे हैलोपेरिडल का संबंध ग्रे मैटर वॉल्यूम में अत्यधिक कमी से था, जबकि असामान्य मनोरोग प्रतिरोधी दवाओं जैसे ओलान्जेपिन से नहीं था.
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फीयर साइकोसिस यानी डर के मरीज तो वे पहले से ही थे, भूलने की गंभीर बीमारी उन्हें हो गयी थी जिसके कारण वे हमेशा परेशान रहे और असहज जीवन जीने को मज़बूर रहे।
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AMजो आप बता रहे हैं वह फ्रायड, जुंग, एडलर आदि विस्तार से लिख गए हैं...न्युरोसिस एक अलग ब्रांच है..और फंशनल साइकोसिस एक अलग...दोनों की तुलना करना अजीब लगता है.बहरहाल..अच्छी पोस्ट.