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सामंतीय उदाहरण वाक्य

उदाहरण वाक्य
21.इस तरह भक्ति, परमगति,मोक्ष आदि की वेदांती धारा ने उत्पीडितों के प्रतिरोध को तबतक उभरने नहीं दिया जब-तक कि तुर्क हमलों और उनके सामाजार्थिक परिवर्तनों ने सामंतीय व्यवस्था को शिथिल नहीं कर दिया।

22.” प्रोफेसर राधावल्लभ त्रिपाठी ने ठीक ही कहा है कि “ सामंतीय समाज में स्त्री को एक उपभोग की वस्तु बना दिये जाने के विरुद्ध प्रतिक्रिया कालिदास और भवभूति दोनों ने बड़े प्रखर रूप में दी है।

23.नस्ल-जाति और मजहब के जो सामंतीय रूप थे, उन्हें इसके दोहरे चेहरे वाली आधुनिकता ने उभारकर इस्तेमाल भी किया और उसे सार्वजनिक के विरोध में निजी चेतना का विकास बना कर उसे ऐसी वस्तु भी बनाया-जिससे छुटकारा पाना जरूरी था।

24.उससे ऊपर, परंतु वहीं, एक सहज, स्वाभाविक और स्वच्छ चहल-पहल थी, गोंड़ों का एक जन राज्य था जिसको सामंतीय ढाँचे ने कुछ ढाल अवश्य दिया था, परंतु बिलकुल परिवर्तित नहीं कर पाया था ; उसको देखना है, और वही हमारे लिए कुछ महत्त्व रखता है।

25.शीर्ष पर स्त्री है पर है तो हमारी गढी हुई छवि के साथ ही न! ममत्व, सहनशीलता, पुरुष के वरद हस्त के सम्मान की भावना जो इस स्त्री चित्र से उपजती है कैसा निराला सामाजिक प्रभाव होता है उसका-ये प्रभाव सामंतीय मन को ढांढस दिलाता है!

26.भारत के नौवीं से बारहवीं सदी के बीच सामंतीय साम्राज्य वाली व्यवस्था का बिखरना शुरू हो गया था-नतीजतन नाथों-सिद्धों से लेकर संतों और सूफियों तक ऐसी सोच प्रकट होनी आरंभ हो गई थी कि हमें सामंतीय रिश्तों को बनाए रखने वाली जाति और मजहब की व्यवस्थाओं से छुटकारा पाना होगा।

27.भारत के नौवीं से बारहवीं सदी के बीच सामंतीय साम्राज्य वाली व्यवस्था का बिखरना शुरू हो गया था-नतीजतन नाथों-सिद्धों से लेकर संतों और सूफियों तक ऐसी सोच प्रकट होनी आरंभ हो गई थी कि हमें सामंतीय रिश्तों को बनाए रखने वाली जाति और मजहब की व्यवस्थाओं से छुटकारा पाना होगा।

28.शीर्ष पर स्त्री है पर है तो हमारी गढी हुई छवि के साथ ही न! ममत्व, सहनशीलता, पुरुष के वरद हस्त के सम्मान की भावना जो इस स्त्री चित्र से उपजती है कैसा निराला सामाजिक प्रभाव होता है उसका-ये प्रभाव सामंतीय मन को ढांढस दिलाता है!

29.यहां बस और ट्रक के रूप्ा, आकार या गति के आधार पर नहीं बल्कि हिन्दी भाषा के भीतर मौजूद सामंतीय संस्कार, जो सिर झुका कर काम करने वाली स्त्री की तस्वीर हमारे सामने रखते हैं, वैसे ही सार्वजनिक रूप से सेवा के भाव के साथ कार्य में जुती बस को स्त्रीलिंग और उसी सामंतीय संस्कारों के चलते बलशाली से दिखते और अपनी मर्जी से संचालित होते भाव को लिए ट्रक को पुल्र्लिंग बना देते हैं।

30.यहां बस और ट्रक के रूप्ा, आकार या गति के आधार पर नहीं बल्कि हिन्दी भाषा के भीतर मौजूद सामंतीय संस्कार, जो सिर झुका कर काम करने वाली स्त्री की तस्वीर हमारे सामने रखते हैं, वैसे ही सार्वजनिक रूप से सेवा के भाव के साथ कार्य में जुती बस को स्त्रीलिंग और उसी सामंतीय संस्कारों के चलते बलशाली से दिखते और अपनी मर्जी से संचालित होते भाव को लिए ट्रक को पुल्र्लिंग बना देते हैं।

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