दरअसल सामान्य साहित्य पद का प्रयोग कुछ पाठ्यक्रमों में परस्पर अंतर को दर्शाने के लिए किया जाता रहा है.
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मगर उसके अध्ययन की पद्धति तुलनात्मक होती है जबकि सामान्य साहित्य इस प्रकार की किसी पद्धति का निर्धारण नहीं करता.
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जेम्स मांटुगमरी ने 1833 में सामान्य साहित्य पर भाषण देते हुए इसके अंतर्गत काव्यशास्त्र अथवा सामान्य सिद्धांत पर ही चर्चा की थी.
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हालाकिं इस बात से यह चर्चा भी शुरु हो सकती है कि क्या विज्ञान साहित्य और सामान्य साहित्य को अलग अलग रक्खा जाना चाहिये या नही?
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इस प्रकार के संतों की परंपरा यद्यपि बराबर चलती रही और नए-नए पंथ निकलते रहे पर देश के सामान्य साहित्य पर उनका कोई प्रभाव न रहा।
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इस प्रकार के संतों की परंपरा यद्यपि बराबर चलती रही और नए-नए पंथ निकलते रहे पर देश के सामान्य साहित्य पर उनका कोई प्रभाव न रहा।
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हालाकिं इस बात से यह चर्चा भी शुरु हो सकती है कि क्या विज्ञान साहित्य और सामान्य साहित्य को अलग अलग रक्खा जाना चाहिये या नही?
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आलम यह है कि हिंदू ग्रंथों को उपेक्षित करने के लिए ही इसे जब चाहे धर्म-पुस्तक मानकर बहिष्कृत किया जाता है, अथवा सामान्य साहित्य मानकर जैसे-तैसे चीरा-फाड़ा जाता है।
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उन्होंने केवल सामान्य साहित्य ही छोड़ा है जिसमें कहीं-कहीं पर ऐतिहासिक वर्णन भी है, किन्तु, जैसा कि स्पष्ट दिखाई देता है, केवल आकस्मिक वर्णन को इतिहास नहीं समझा जा सकता।”
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इसी बात को आगे बढ़ाते हुए हार्स्ट फ्रेंज़ ने कहा ही कि सामान्य साहित्य से तात्पर्य है साहित्यिक प्रवृत्तियों, समस्याओं एवं सिद्धांतों का सामान्य अध्ययन अथवा सौंदर्यशास्त्र का अध्ययन.