रघुवीर सहाय कोई ऐसे लेखक न थे जो अपनी बात कह चुका हो, अपनी कारगुजारी दिखा चुका हो और अब जल्दी से उसका साहित्यिक मूल्यांकन कर डालना या स्मारक बना देना शेष रह गया हो।
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रघुवीर सहाय कोई ऐसे लेखक न थे जो अपनी बात कह चुका हो, अपनी कारगुजारी दिखा चुका हो और अब जल्दी से उसका साहित्यिक मूल्यांकन कर डालना या स्मारक बना देना शेष रह गया हो।
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अगर ये परिवर्तन भारतीय समाज को स्थायी रूप से बदल देते हैं तो सवाल सिर्फ़ साहित्यिक मूल्यांकन तक सीमित नहीं रह जायेगा, हमारी पार्टी को अपने कार्यक्रम और कार्यनीति में भी अनेक परिवर्तन करने पड़ेंगे ।
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अगर यही कविता किसी ने हिंदी में लिखी होती तो निश्चित है कि बहस ज्यादा से ज्यादा साहित्यिक मूल्यांकन तक होती क्योंकि हममें से अधिकांश यह सोच ही नहीं पाते हैं कि कविता के ज़रिये बाहर की दुनिया पर भी बात की जा सकती है।
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३. मुझे उन मित्रों का,दिवंगतों का किया हुआ बखूब याद है जिनके बारे में व्योमेश ने लिखा है और मेरे मन में उन सब के प्रति गहरा सम्मान है-प्रश्न है लेखकों का वास्तविक समाज में परिवर्तन और प्रतिरोध के लिए लिखने के अलावा भी कुछ करना जो ज़रूरी मानते हैं-उनके उस किये में साहित्य का कितना योगदान है और इससे उनके साहित्यिक मूल्यांकन पर क्या फर्क पड़ना चाहिए.
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पर क्या वो द्विपक्षीयता पूरी तरह नष्ट हो गयी या अभी कुछ बाकी है? ३. मुझे उन मित्रों का, दिवंगतों का किया हुआ बखूब याद है जिनके बारे में व्योमेश ने लिखा है और मेरे मन में उन सब के प्रति गहरा सम्मान है-प्रश्न है लेखकों का वास्तविक समाज में परिवर्तन और प्रतिरोध के लिए लिखने के अलावा भी कुछ करना जो ज़रूरी मानते हैं-उनके उस किये में साहित्य का कितना योगदान है और इससे उनके साहित्यिक मूल्यांकन पर क्या फर्क पड़ना चाहि ए.