न जाने क्या सोचकर तब न सिर्फ़ दोनों हाथों से चेहरा छुपाकर आँखें बंद कर ली थीं उसने, अपितु चुपचाप सर झुकाए वहाँ से तुरंत ही चली भी गई थी वह-मानों प्रणव हमउम्र नहीं, एक जादूगर थे और उनके आगे कुछ पल और रुके रहने से सारे भेद खुल जाने का अंदेशा था उसे।
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न जाने क्या सोचकर तब न सिर्फ़ दोनों हाथों से चेहरा छुपाकर आँखें बंद कर ली थीं उसने, अपितु चुपचाप सर झुकाए वहाँ से तुरंत ही चली भी गई थी वह-मानों प्रणव हमउम्र नहीं, एक जादूगर थे और उनके आगे कुछ पल और रुके रहने से सारे भेद खुल जाने का अंदेशा था उसे।
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अचानक हुई इस घटना ने दोनों को चौंका दिया, दोनों को सुर से ये उम्मीद नहीं थी दोनों सुर को दोषी समझने लगे,सुर ने अपना पक्ष रखने की बहुतेरी कोशीश की, वह सिर्फ़ दोनों को बताना चाहती थी कि आपसी मतभेद भुलाकर आने वाली पीढी के लिए एक मिसाल कायम की जा सकती है पर दोनों ने नहीं सुनी और दोनों ने सुर को ही दोषी माना।