सुखांत नाटक के विकास में दीरियाई लोगों का महत्वपूर्ण योग रहा, परंतु इसका उत्कर्ष तो एतिका से ही संबंधित है क्योंकि प्राचीन ग्रीक सुखांत नाटक के प्रबल प्रवर्तक अरिस्तोफानिज का कार्यक्षेत्र तो एथेंस ही रहा।
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सुखांत नाटक के विकास में दीरियाई लोगों का महत्वपूर्ण योग रहा, परंतु इसका उत्कर्ष तो एतिका से ही संबंधित है क्योंकि प्राचीन ग्रीक सुखांत नाटक के प्रबल प्रवर्तक अरिस्तोफानिज का कार्यक्षेत्र तो एथेंस ही रहा।
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सुखांत नाटक के विकास में दीरियाई लोगों का महत्वपूर्ण योग रहा, परंतु इसका उत्कर्ष तो एतिका से ही संबंधित है क्योंकि प्राचीन ग्रीक सुखांत नाटक के प्रबल प्रवर्तक अरिस्तोफानिज का कार्यक्षेत्र तो एथेंस ही रहा।
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सुखांत नाटक के विकास में दीरियाई लोगों का महत्वपूर्ण योग रहा, परंतु इसका उत्कर्ष तो एतिका से ही संबंधित है क्योंकि प्राचीन ग्रीक सुखांत नाटक के प्रबल प्रवर्तक अरिस्तोफानिज का कार्यक्षेत्र तो एथेंस ही रहा।
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किसी सुखांत नाटक की तरह कहानी के अंत में वह खजाना नायक को नाटकीय अंदाज में अपने ही ठौर पर दबा हुआ मिलता है, जिसे वह अपने स्वप्न के आधार पर तमाम दुनिया में तलाशता फिर रहा था।
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किसी सुखांत नाटक की तरह कहानी के अंत में वह खजाना नायक को नाटकीय अंदाज में अपने ही ठौर पर दबा हुआ मिलता है, जिसे वह अपने स्वप्न के आधार पर तमाम दुनिया में तलाशता फिर रहा था।
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किसी सुखांत नाटक की तरह कहानी के अंत में वह खजाना नायक को नाटकीय अंदाज में अपने ही ठौर पर दबा हुआ मिलता है, जिसे वह अपने स्वप्न के आधार पर तमाम दुनिया में तलाशता फिर रहा था.
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किसी सुखांत नाटक की तरह कहानी के अंत में वह खजाना नायक को नाटकीय अंदाज में अपने ही ठौर पर दबा हुआ मिलता है, जिसे वह अपने स्वप्न के आधार पर तमाम दुनिया में तलाशता फिर रहा था।
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ग्रीक सुखांत नाटक का उदय भी दियोनिसस देवता की पूजा से ही हुआ, परंतु इस पूजा का आयोजन जाड़े में न होकर वसंत में होता था और पुजारियों का जुलूस वैसे ही उद्दंडता तथा अश्लीलता का प्रदर्शन करता था जैसा भारत में होली के अवसर पर प्राय: देखने में आता है।
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ग्रीक सुखांत नाटक का उदय भी दियोनिसस देवता की पूजा से ही हुआ, परंतु इस पूजा का आयोजन जाड़े में न होकर वसंत में होता था और पुजारियों का जुलूस वैसे ही उद्दंडता तथा अश्लीलता का प्रदर्शन करता था जैसा भारत में होली के अवसर पर प्राय: देखने में आता है।