ुभाव, संध्या सुमरनी की ये पंक्तियाँ सन्त शिरोमणी कबीरदास जी की सबसे प्रभावशाली और मार्मिक पंक्तियों में से एक हैं ।
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तो तुमने सुमरनी में जयप्रकाश शाला को सुमरा, हमे जयप्रकाश शाला के साथ अशोक शाला भी याद आ गयी.
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यहाँ प्रस्तुत हैं विनायक सेन के लिए नरेन्द्र कुमार मौर्य के दो गीत, जो उनके ब्लॉग सुमरनी से साभार लिए गए हैं।
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हमें इन पन्क्तियों के कहे जाने का अर्थ जानना आवश्यक है क्योंकि ये शब्द संध्या सुमरनी में हर रोज़ दुहराए जाते हैं ।
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हमें इन पन्क्तियों के कहे जाने का अर्थ जानना आवश्यक है क्योंकि ये शब्द संध्या सुमरनी में हर रोज़ दुहराए जाते हैं ।
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यहाँ प्रस्तुत हैं विनायक सेन के लिए नरेन्द्र कुमार मौर्य के दो गीत, जो उनके ब्लॉग सुमरनी से साभार लिए गए हैं।
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तुम दाता दुःख भंजना मेरी करो उबार॥ महानुभाव, संध्या सुमरनी की ये पंक्तियाँ सन्त शिरोमणी कबीरदास जी की सबसे प्रभावशाली और मार्मिक पंक्तियों में से एक हैं ।
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धागा हूँ मैं मुझे माला बना प्रीत के मनके पिरोनेह की गाँठें लगा खुद को सुमरनी का मोती बना मेरे किनारों को स्वयं से मिला कुछ इस तरहधागे को माला बनाअस्तित्व धागे कामाला बने माला की सम्पूर्णता में सजे जहाँ धागा
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धागा हूँ मैं मुझे माला बना प्रीत के मनके पिरोनेह की गाँठें लगा खुद को सुमरनी का मोती बना मेरे किनारों को स्वयं से मिला कुछ इस तरहधागे को माला बनाअस्तित्व धागे कामाला बने माला की सम्पूर्णता में सजे जहाँ धागा...
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यह संयोग ही है कि होशंगाबाद के पिपरिया कस्बे के हमारे एक साथी नरेन्द्र ने-जो पिछले बीस-पच्चीस सालों से दिल्ली में हैं-दो चार दिन पहले ही अपना एक ब्लाग बनाया है सुमरनी, उस पर उन्होंने पिपरिया को कुछ इसी तरह याद किया है।