कुल की महफिल में दरगाह की प्रथम चोकी के कव्वालों द्वारा रंग और बधावे के अलावा फारसी व हिन्दी में सूफीमत के प्रर्वतकों द्वारा लिखे गऐ कलाम पेश किये।
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ख्वाजा की दरगाह के सज्जादानशीन ने एक बयान में कहा कि ख्वाजा एक आध्यामिक संत थे और उन्होंने अपने जीवनकाल में इबादत, तकवा, परहेजगारी पर कायम रहते हुए, कुरान और इस्लामी शरीअत को आत्मसात करके लोगों को कानूने शरीअत के मुताबिक ज़िंदगी बसर करने का संदेश दिया और सूफीमत के चिश्तिया सिलसिले की स्थापना की।