इस प्रकार जो यथार्थ ' आत्मा ' है, वह सूर्य की ज्योति से प्रकट होकर शरीर में प्रवेश करता है, किन्तु मृत्यु के समय शरीर के सभी सुख-दु: ख से मुक्त होकर यह पुन: उसी ' आदित्य ' में समा जाता है।
22.
मनुष्य जाति इस पृथ्वी में रहते हुए, जहां जीवों के लिए सूर्य की ज्योति, पानी, ताजा हवा आदि सारी जरूरी चीजें उपलब्ध हैं, परमेश्वर का बनाया हुआ सब कुछ जी भर कर इस्तेमाल कर रही है और आराम से रह रही है।
23.
अब तो झील की निर्मलता, आकाश की अनभ्रता को प्रतिबिम्बित कर रही है, और झील के अन्तर में उगती हुई लम्बी-लम्बी घास सूर्य की ज्योति को प्रतिबिम्बित करती हुई, अनेक रंगों में चमक रही है-कहीं सुनहरी, कहीं लाल, कहीं एक प्रोज्ज्वल हरापन लिये हुए।
24.
जिस प्रकार सर्वत्र पृथ्वी पर सूर्य की ज्योति द्वारा सुखों की वृद्धि के लिए मेघादि और खाद्य पदार्थों में रसादि की उत्पत्ति होती है, उसी प्रकार राजा का समाज के प्रति कर्तव्य है कि संसार में शुद्ध जल के साधन और मनोहर शुद्ध वायु को उपलब्ध कराए जिस से गौ और अश्वादि समाज को पूर्ण उन्नति प्रदान कर के राजा का सम्मान बढ़ावें.
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जिस प्रकार सर्वत्र पृथ्वी पर सूर्य की ज्योति द्वारा सुखों की वृद्धि के लिए मेघादि और खाद्य पदार्थों में रसादि की उत्पत्ति होती है, उसी प्रकार राजा का समाज के प्रति कर्तव्य है कि संसार में शुद्ध जल के साधन और मनोहर शुद्ध वायु को उपलब्ध कराए जिस से गौ और अश्वादि समाज को पूर्ण उन्नति प्रदान कर के राजा का सम्मान बढ़ावें.