हम उस समाज में रहते हैं जो तेजी से विकसित होना चाहता है, आसमान की उंचाईयों को छूना चाहता है | सपने देखना अच्छी बात है | एक सामाजिक प्राणी होने के नाते समाज के विकास की कल्पना और उसके ढांचों को विकसित करने की महत्वाकांक्षा हमारे अंदर होनी ही चाहिए | लेकिन सवाल है कैसे? क्या परम्पराओं और रूढिवादिता के चक्रव्यूह में फंसकर कोई समाज तरक्की कर सकता है?