स्त्री स्वभाव से अगर समर्पण के लिए इक्छुक थी तो पुरुष व्याकुल था एक ठौड़-ठहराव के लिए और उस दृष्टिकोण से कई बार विवाह जीवन की सम्पूर्णता होता भी था.
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लेकिन बच्चे खेलने में मशगुल थे और हम दोनों भी काफी देर तक चुप-चाप तो बैठे रह नहीं सकते थे (स्त्री स्वभाव वस) और फिर बातों का सिलसिला चल पड़ा.
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ताश के पत्तो मे अगर पहला पत्ता बेगम का आता है तो व्यक्ति स्त्री स्वभाव का होता है वह या तो स्त्री होती है या उसके अन्दर स्त्रियों के प्रति अधिक चाहत होती है।
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चूंकि पुरुष “ बहिरंग ” होता है अतः उसकी लफंगई की हरकतें भी बहिरंग होती हैं और स्त्री स्वभाव से ” अन्तरंग ” होती है अतः उसकी लफंगई की हरकतें भी अन्तरंग होती हैं.
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स्त्री स्वभाव की एक सबसे बड़ी त्रासदी यह भी है कि आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर औरत का भी भावात्मक कोना उतना ही वल्नरेबल, अशक्त और अपेक्षाएँ रखनेवाला होता है जितना एक आश्रित घरेलू गृहिणी का।
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इसके विपरीत स्त्री स्वभाव अधिकतर स्थिर रहता है इसलिए उसके शरीर में आय व्यय से अधिक होती है अर्थात् उसके आहार का अधिक भाग उसके शरीर की पुष्टि में व्यय होता है और इस प्रकार वह बहुत कुछ शरीर में जमा होता रहता है।
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मुझे लगता है कि अगर उसके चरित्र एक आदमी था, यह मुख्य रूप से पहचान की बात थी और क्योंकि केवल एक सभ्य आदमी खेल के परीक्षण का सामना कर सकते हैं, लेकिन वह वास्तव में एक पूरी तरह से स्त्री स्वभाव को दिया था! ”
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पति ने नि: श्वास छोड़ते हुए जोर से कहा, “ हार चाहिए था, तो पहले से क्यों नहीं कहा? ” स्त्री स्वभाव है, इसीलिए न? अगर इस घरेलू राजनीति के नियमों की जानकारी स्त्री-पुरुष को हो, तो स्त्री की टेढ़ी-मेढ़ी नीति में पुरुष को खटपट की गंध न आएगी और पुरुष के झटपट किए हुए फैसले में स्त्री को जड़ता नहीं दिखाई देगी।