यह अटल नियम चुम्बकों के सार्वदैहिक प्रयोग पर ही लागू होता है, जबकि स्थानिक प्रयोग की अवस्था में रोग संक्रमण, दर्द, सूजन आदि पर अधिक ध्यान दिया जाता है।
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यह अटल नियम चुम्बकों के सार्वदैहिक प्रयोग पर ही लागू होता है, जबकि स्थानिक प्रयोग की अवस्था में रोग संक्रमण, दर्द, सूजन आदि पर अधिक ध्यान दिया जाता है।
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चुम्बकों के प्रयोग में अधिकतर कई प्रकार के रोगों के लक्षणों के आधार पर चुम्बकों का स्थानिक प्रयोग या सार्वदैहिक प्रयोग 10 मिनट से लेकर 30 मिनट तक अच्छा माना जाता है।
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स्थानिक प्रयोग में भाषा में लिंग त्रुटि बहुतायत देखी जाती हैं, लेखक ने यहाँ पर भी त्रुटिपूर्ण लिंग प्रयोग करते हुए पात्रों की भाषा में यथार्थ प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।
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स्थानिक प्रयोग में भाषा में लिंग त्रुटि बहुतायत देखी जाती हैं, लेखक ने यहाँ पर भी त्रुटिपूर्ण लिंग प्रयोग करते हुए पात्रों की भाषा में यथार्थ प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।
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यथा-पंघत (पंगत), आधी नीबू (आधा नीबू), मुस्की (स्थानिक प्रयोग), पिहकारी (पक्षियों के लिए प्रयुक्त होने वाला शब्द ; वानरों के लिए प्रयुक्त) आदि।
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स्थानिक प्रयोग-स्थानिक प्रयोग में चुम्बकों का प्रयोग शरीर के उस भाग पर किया जाता है जो भाग रोगग्रस्त होता है जैसे-दर्दनाक कशेरूका, आंख, नाक, घुटना, पैर आदि।
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स्थानिक प्रयोग-स्थानिक प्रयोग में चुम्बकों का प्रयोग शरीर के उस भाग पर किया जाता है जो भाग रोगग्रस्त होता है जैसे-दर्दनाक कशेरूका, आंख, नाक, घुटना, पैर आदि।
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2) स्थानिक प्रयोग-इस प्रयोग विधि में चुम्बकों को उन स्थानों पर लगाया जाता है, जो रोगग्रस्त होते हैं, जैसे-घुटना और पैर, दर्दनाक कशेरुका, आँख, नाक आदि।
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उदाहरण के लिये यदि किसी व्यक्ति की नाक के अन्दर थोड़ा सा मांस बढ़ गया हो या गलतुण्डिका शोथ की अवस्था हो तो चुम्बकों का सार्वदैहिक प्रयोग नहीं करना चाहिए बल्कि इस अवस्था में स्थानिक प्रयोग करना चाहिए।