अनिकेतः स्थिरमतिर्भक्तिमान्मे प्रियो नरः॥ भावार्थ: जो निंदा-स्तुति को समान समझने वाला, मननशील और जिस किसी प्रकार से भी शरीर का निर्वाह होने में सदा ही संतुष्ट है और रहने के स्थान में ममता और आसक्ति से रहित है-वह स्थिरबुद्धि भक्तिमान पुरुष मुझको प्रिय है॥ 19 ॥ ये तु धर्म्यामृतमिदं यथोक्तं पर्युपासते।
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सूर्य-नमस्कार से जीवन परिवर्तित हुआ करता है, यह एक परम तथ्य है | आदित्य-हृदय-स्तोत्र के नित्य पढने से और सच्ची श्रध्दा से सूर्य-नमस्कार करने एवं सूर्य को अर्घ्य प्रदान करने से सम्पूर्ण आरोग्य के साथ-साथ वह आत्मविश्वास जीवन में आने लगता है जो हमें जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियों में “ स्थिरबुद्धि ' बना देता हैऔर जीवन-मुक्त बना देता हा के