संप्रज्ञात समाधि को 4 भागों में बांटा गया है-1. वितर्कानुगत समाधि-सूर्य, चन्द्र, ग्रह या राम, कृष्ण आदि मूर्तियों को, किसी स्थूल वस्तु या प्राकृतिक पंचभूतों की अर्चना करते-करते मन को उसी में लीन कर लेना वितर्क समाधि कहलाता है।
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यही कारण है कि कोई व्यक्ति ज्योति का सहारा लिए बगैर किसी भी स्थूल वस्तु को पहचानना तो दूर रहा देख ही नहीं सकता है और दूसरी तरफ किसी भी व्यक्ति अथवा वस्तु को ‘ शब्द ' का सहारा लिए बगैर अच्छा सम्बन्ध होना तो दूर रहा, एक-दूसरे का परिचय ही नहीं हो पाएगा यानि एक-दूसरे को आपस में जाना ही नहीं जा सकता।