यूनाइटेड किंगडम और निर्भरता में, क्षेत्रीय या अल्पसंख्यक भाषाओं के लिए यूरोपीय प्राधिकार द्वारा अन्य भाषाओं को आधिकारिक तौर पर असल स्वदेशीय (क्षेत्रीय) भाषाओँ के रूप में मान्यता दी गई है.
22.
यदि हाल की अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संकट को देखा जाय तो भारत इस लिये सुरक्षित था या यू कहे उस पर प्रभाव नही पड़ा क्योकि उसकी स्वदेशीय वित्तीय व्यवस्था में विदेशी हिस्सेदारी नही दी थी.
23.
↑ यूनाइटेड किंगडम और निर्भरता में, क्षेत्रीय या अल्पसंख्यक भाषाओं के लिए यूरोपीय प्राधिकार द्वारा अन्य भाषाओं को आधिकारिक तौर पर असल स्वदेशीय (क्षेत्रीय) भाषाओँ के रूप में मान्यता दी गई है.
24.
(2) निजी शिक्षा संस्थाओं का निष्पक्ष मूल्यांकन करना, शैक्षिक समस्याओं की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि एवं उनके कारणों की ओर ध्यान केंद्रित करना, साथ ही अन्य देशों की समस्या-समाधान-युक्तियों से स्वदेशीय शिक्षा समस्याओं के समाधान की सूझ विकसित करना।
25.
(2) निजी शिक्षा संस्थाओं का निष्पक्ष मूल्यांकन करना, शैक्षिक समस्याओं की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि एवं उनके कारणों की ओर ध्यान केंद्रित करना, साथ ही अन्य देशों की समस्या-समाधान-युक्तियों से स्वदेशीय शिक्षा समस्याओं के समाधान की सूझ विकसित करना।
26.
उस समय महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती एकमात्र ऐसे नेता थे जिन्होंने महारानी विक्टोरिया की घोषणा पर सिंह गर्जना करते हुए कहा, “ कोई कितना भी करे, परन्तु जो स्वदेशीय राज्य होता है वही सर्वोपरि उत्तम होता है।
27.
(2) निजी शिक्षा संस्थाओं का निष्पक्ष मूल्यांकन करना, शैक्षिक समस्याओं की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि एवं उनके कारणों की ओर ध्यान केंद्रित करना, साथ ही अन्य देशों की समस्या-समाधान-युक्तियों से स्वदेशीय शिक्षा समस्याओं के समाधान की सूझ विकसित करना।
28.
स्वदेश-प्रेम: महर्षि ने सत्यार्थ प्रकाश में जोरदार शब्दों में लिखा-” कोई कितना ही कहे परन्तु जो स्वदेशीय राज्य होता है वह सर्वोपरि उत्तम होता है | अथवा मतमतान्तर के आग्रह रहित अपने और पराये का पक्षपात शून्य, प्रजा पर माता..
29.
गृह्यकृत्य-प्रातः सामान्य पर्वपद्धति से प्रदर्शित प्रकारानु्सार गृह के परिमार्जन (शोधन-लेपनादि) के पश्चात् स्वदेशीय पीताम्बर (पीतपट) परिधानपूर्वक सपरिवार समान्य होम कर के वसन्त वर्णनात्मक निम्नलिखित मन्त्रों से केशर मिश्रित (वा उस के आभाव में हरिद्रामिश्रित) हलवे के स्थालीपाक से पांच अधिक आहुतियां दी जायें |
30.
“ कोई कितना ही करे, परन्तु जो स्वदेशीय राज्य होता है, वह सर्वोपरि उत्तम होता है अथवा मत-मतान्तर के आग्रहरहित, अपने और पराये का पक्षपातशून्य, प्रजा पर माता-पिता के समान कृपा, न्याय और दया के साथ भी विदेशियों का राज्य पूर्ण सुखदायक नहीं है।