फ़ोश क़िस्सा सुनाना कुर्सी पर बैठे दालमिल वाले सेठ के नौउम्र इकलौते लड़के के लिए हज़ामत के साथ हर दिन निभाया जाने वाला उसका फ़र्ज़ है और उससे उसकी यही उम्मीद है
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हज़ामत बनाने वाले पग-पग पर हैं, देह पर दस्तक देने वाले, जब तब रगड़ देने वाले हर पायदान पर हैं और पाए की गालियां तक नहीं हैं आप के पास?
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लेकिन उसकी हज़ामत से संत पीटर ने तौबा कर ली और चेहरे पर जगह जगह आयी खरोंचों के बाद उन्होंने तय किया कि नाई से हज़ामत बनाने से बेहतर है दाढ़ी रख लेना.
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लेकिन उसकी हज़ामत से संत पीटर ने तौबा कर ली और चेहरे पर जगह जगह आयी खरोंचों के बाद उन्होंने तय किया कि नाई से हज़ामत बनाने से बेहतर है दाढ़ी रख लेना.
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फुटपाथ पर हज़ामत बनाने वाले ग़रीब नाई का आशंकित और हर पल संभावित विस् थापन से लड़ने की क्षमता अर्जन करने के दौरान एक हास् यास् पद और किसी हद तक विक्षिप् त स् थिति तक पहुंच जाने कि दुर्दशा के चित्रण से मार्मिक अनुभूति का सफल और सहज सम् प्रेषण इस कहानी की खासियत है।