(२) कठिन कष्टदायक काम मॅक्स मूलर कहते हैं: निःसंदेह, यह काम कठिन है, कष्टदायक भी, और बहुत बार हताश करने वाला भी है, पर युवा छात्रों को वे वचन जो डॉ. बर्नेल ने कहे थे, ध्यान में रखने चाहिए,-” जिस काम को करने से, अन्यों को (हमारी बाद की पीढियों को) सुविधा होगी, ऐसा कोई कठिन काम त्यागना नहीं चाहिए।
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दरअसल कालेज में हुए एक सेमिनार में प्रोफेसर स्टीफन ने कहा था कि उनकी नज़र में प्रोफेसर जोसेफ़ को बर्खास्त किए जाना अन्यायपूर्ण और हताश करने वाला था...उल्लेखनीय है कि कालेज कोट्टायम की जिस महात्मा गांधी यूनिवर्सिटी के अंतर्गत आता है, उसके अपीलेट ट्रिब्यूनल ने भी प्रोफेसर जोसेफ़ की बर्खास्तगी को रद्द करने के लिए कालेज से कहा था...लेकिन कालेज ने ट्रिब्यूनल की भी एक नहीं सुनी और प्रोफेसर जोसेफ़ की बर्खास्तगी को वापस लेने से साफ मना कर दिया...और प्रोफेसर स्टीफन ने प्रोफेसर जोसेफ़ का साथ देना चाहा तो उनके साथ भी वही सलूक किया...