इस जगह बालक गोविन्द अपनी माता गुजरीजी के साथ रहते थे और मित्रो के साथ खेलते थे-यहा ऐक हाथ का लिखा हुआ ग्रन्थ साहेब भी हे जो काफी पुराना हे-यहाँ आज भी गाय-भेंसे हे जिनका दूध निकल कर संगत के लिए खीर बनती हे-गुरु गोविन्द सिंह जी को खीर बहुत पसंद थी इसलिए सेवा दारो के आग्रह पर हमने वहाँ लंगर खाया जिसमे खीर प्रमुख थी-बेरी टेस्टी-!